वार रूम संस्कृति ने किया बेड़ा गर्क!

8ce9b58e e68c 4a56 9b9c 2ab5108914d3
फोटो सोशल मीडिया

-देवेंद्र यादव-

61af57aa 04cc 4423 b818 28336773997a
देवेंद्र यादव

अनुभवी चुनावी रणनीतिकारों की वजह से कांग्रेस केंद्र और राज्यों की सत्ता में वापसी करती थी। मगर 2014 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद, कांग्रेस ऐसे जाल में फंसी कि लगातार तीन लोकसभा चुनाव और विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव हारती चली गई।
2014 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र में अपनी सरकार बनाई। देश के मीडिया और राजनीतिक गलियारों में भाजपा की जीत की चर्चा इस रूप में भी होने लगी कि उसकी जीत के पीछे प्रशांत किशोर जैसे चुनावी रणनीतिकारों की अहम भूमिका थी। प्रशांत किशोर भाजपा से अलग हुए या भाजपा ने उन्हें एक योजना के तहत अलग किया? इसका ठीक से खुलासा नहीं हुआ है मगर विपक्षी पार्टियां, इस भ्रम में आ गई कि प्रशांत किशोर चुनावी रणनीतिकार हैं। उनकी चुनावी रणनीति के कारण शायद 2014 में भाजपा सत्ता में आई थी। विभिन्न राजनीतिक दल 2014 के बाद ऐसे चुनावी रणनीतिकारों का सहारा लेकर चुनावी मैदान में उतरने लगे। कांग्रेस सहित कई राजनीतिक दल झांसे में आकर अपना राजनीतिक नुकसान करते रहे और अपनी पार्टी और अपनी राजनीतिक जमीन को कमजोर करते रहे। वहीं भारतीय जनता पार्टी प्रशांत किशोर जैसे चुनावी रणनीतिकारों की रणनीति के बगैर भी देश और राज्यों में मजबूत होती रही। अब सवाल यह है कि प्रशांत किशोर और उनकी टीम के अन्य सदस्य भाजपा से दूर हैं लेकिन भाजपा ने 2019 का लोकसभा चुनाव प्रचंड बहुमत के साथ जीता और 2024 में भाजपा ने केंद्र में अपनी सरकार की हैट्रिक बनाई। बगैर प्रशांत किशोर और उनकी टीम के देश के विभिन्न राज्यों में भाजपा ने न केवल अपनी सरकार बनाई बल्कि देश के अनेक राज्य ऐसे थे जहां भाजपा ने पहली बार अपनी सरकार बनाई। सवाल यह है कि कांग्रेस देश की मजबूत इसलिए थी क्योंकि उसके पास चुनावी रणनीतिकार थे। मगर 2014 की हार के बाद, कांग्रेस में कथित पेशेवर चुनावी रणनीतिकारों ने ले लिया। कांग्रेस लगातार केंद्र और राज्यों में चुनाव हार रही है। जहां कांग्रेस के पदाधिका​री कार्यालय में बैठकर, चुनावी रणनीति बनाते थे अब वही रणनीति कार्यालय को छोड़कर वार रूम में पेशेवर रणनीतिकारों के साथ बैठ कर बना रही है। नतीजा क्या है। कांग्रेस कई राज्यों में अपनी इज्जत भी नहीं बचा पा रही है। वार रूम की संस्कृति से कांग्रेस को ना केवल वोट बल्कि नोट का भी बड़ा नुकसान हुआ है।
कांग्रेस के भीतर वार रूम का चलन इतना हो चुका है कि वहां न केवल चुनावी रणनीति बनती है बल्कि राजस्थान में तो प्रदेश कांग्रेस कमेटी की बैठक भी अब कांग्रेस कार्यालय की जगह वार रूम में ही होती है। जब तक हाई कमान वार रूम का मोह नहीं त्यागेगा तब तक कांग्रेस मजबूत नहीं होगी। एक तरफ कांग्रेस हाई कमान और राहुल गांधी कांग्रेस को मजबूत करने के लिए विभिन्न राज्यों में कांग्रेस संगठन सृजन का अभियान चला रहे है वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस वार रूम में बैठकर चुनावी रणनीति बना रही है। वार रूम की संस्कृति से कांग्रेस के चुनिंदा नेता खुश हो सकते हैं मगर आम कार्यकर्ता नाराज और कुंठित है। आम कार्यकर्ता कांग्रेस को एक के बाद एक राज्यों में हार का कारण कांग्रेस के वार रूम को ही मानता है। चुनिंदा नेता बैठकर टिकटो की बंदर बांट करते हैं, और नतीजा यह होता है कि कांग्रेस जीती हुई बाजी को हार जाती है। बिहार में भी लंबे समय से कांग्रेस का वार रूम में बैठकर पेशेवर चुनावी रणनीतिकार रणनीति बना रहे हैं। वह अभी भी पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव की राजनीतिक ताकत और हैसियत को नहीं समझ पा रहे हैं। अभी तक वार रूम में बैठे पेशेवर चुनावी रणनीतिकार नहीं समझ पाए कि बिहार में कांग्रेस के लिए पप्पू यादव कितने महत्वपूर्ण हैं जो कांग्रेस की इज्जत बचा सकते हैं!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments