
-देवेंद्र यादव-

दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर राहुल गांधी पर सवाल उठ रहे थे कि वह चुनाव में प्रचार करने क्यों नहीं आ रहे हैं। कांग्रेस की तरफ से कहा जा रहा था कि राहुल गांधी बीमार हैं और वह विश्राम कर रहे हैं। मगर 28 जनवरी को राहुल गांधी चुनावी मैदान में उतरे तो लग रहा है वह विश्राम नहीं बल्कि दिल्ली चुनाव को लेकर मंथन कर रहे थे। जब कांग्रेस ने दिल्ली विधानसभा का चुनाव अपनी दम पर लड़ने का ऐलान किया और इसका आगाज स्वयं राहुल गांधी ने चुनावी जनसभा करके किया था तब कांग्रेस की इस रणनीति से सत्ताधारी आम आदमी पार्टी विचलित हुई । आम आदमी पार्टी ने इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों से यहां तक कहा कि कांग्रेस को इंडिया गठबंधन से अलग कर देना चाहिए। इंडिया गठबंधन के घटक दलों ने कांग्रेस पर दबाव भी बनाया।
समाजवादी पार्टी और टीएमसी ने दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी को अपना समर्थन और पक्ष में चुनाव प्रचार करने का ऐलान किया क्योंकि कांग्रेस दिल्ली की तमाम सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर चुकी थी। कांग्रेस दिल्ली में अपनी दम पर चुनाव लड़ रही है इसलिए दिल्ली में ही नहीं बल्कि पूरे देश में कांग्रेस के इस निर्णय से कांग्रेस का आम कार्यकर्ता उत्साहित और खुश नजर आ रहा है। शायद राहुल गांधी ने रेस्ट नहीं मंथन कर अपने बब्बर शेरों की यह इच्छा पूरी की कि कांग्रेस को राज्यों के विधानसभा चुनाव अपनी दम पर लड़ने चाहिए। परिणाम जो भी हो। मंथन के बाद राहुल गांधी फिर एक बार 28 जनवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए पूरी ताकत के साथ उतरे। दिल्ली की जनता को राहुल गांधी ने बताया कि देश को कांग्रेस की जरूरत क्यों है और कांग्रेस सरकारों ने जनता के भले के लिए सत्ता में रहकर क्या-क्या काम किए। मोदी सरकार और केजरीवाल सरकार ने क्या किया यह भी राहुल गांधी ने दिल्ली की जनता को बताया।
राहुल गांधी के भाषण को गौर से सुने तो उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस ही है जो भारतीय जनता पार्टी से नहीं डरती है बाकी देश की तमाम तमाम पार्टियां भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी से डरती हैं। स्पष्ट है कि कांग्रेस अब अन्य राज्यों में भी अपने दम पर चुनाव लड़ने का मानस बना चुकी है। शायद इसकी भनक अखिलेश यादव और ममता बनर्जी को लग गई है, इसीलिए दोनों नेता अपनी पार्टियों का समर्थन अरविंद केजरीवाल को देने की घोषणा कर चुके हैं।
उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। उसे दोनों राज्यों में पाना ही है। उसका पारंपरिक वोट उससे खिसक कर समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस में जाकर मिल गया और कांग्रेस दोनों राज्यों में खत्म हो गई। अब कांग्रेस को इन राज्यों में वापस खड़ा होना है। कांग्रेस तभी खड़ी होगी जब वह स्वयं लड़कर अपनी ताकत दिखाएगी। कांग्रेस ने इसकी शुरुआत दिल्ली से कर दी है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने 27 जनवरी को मध्य प्रदेश के मऊ में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की जन्मस्थली से मंच पर उपस्थित कांग्रेस के तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं से कहा था कि यदि जिंदा रहना है तो संघर्ष करो। डरो मत लड़ो और जीतो। दिल्ली में कांग्रेस के लिए बड़ा अवसर है। कांग्रेस के नेता खड़गे और राहुल गांधी के शब्दों पर अमल करें तो दिल्ली की जनता के मूड का इतिहास मजबूत सरकारों को बदलने का रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

















