भाजपा और आरएसएस के बजाय जनता की समस्याओं पर ध्यान दे विपक्ष!

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फाइल फोटो सोशल मीडिया

-देवेंद्र यादव-

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देवेन्द्र यादव

भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भीतर जो दिखता है वैसा होता नहीं है। मैं बात कर रहा हूं भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच में चल रहे विवाद और क्लेश की। राजनीतिक गलियारों और मुख्य धारा के मीडिया और सोशल मीडिया पर खूब चर्चा हो कि भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। चर्चा का कारण भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष कौन बनेगा को लेकर अधिक सुनाई दे रही है। चर्चा तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंचालक मोहन भागवत की उम्र को लेकर भी हो रही है कि दोनों नेता 75 वर्ष का होने के बाद क्या अपने-अपने पदों से सन्यास ले लेंगे। यह चर्चा मोहन भागवत के बयान के बाद तेजी से हुई थी। मोहन भागवत ने बयान दिया था कि जिस व्यक्ति की उम्र 70 से अधिक हो जाए उसे सन्यास ले लेना चाहिए। मगर मोहन भागवत ने ही यह बयान देकर की मैंने कभी नहीं कहा कि व्यक्ति 70 के पार होने के बाद संन्यास ले ले पर उन्होंने ही विराम लगा दिया ।
भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस के बीच चल रहे विवाद पर जितनी नजर राजनीतिक विश्लेषक और मीडिया की नहीं है उससे कहीं ज्यादा नजर विपक्ष के नेताओं की है। मगर मेरा राजनीतिक अनुभव कहता है कि यह केवल भ्रम है कि भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस के भीतर किसी प्रकार का कोई विवाद है। इस विवाद के चलते भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस को किसी प्रकार का नुकसान होगा। दोनों के बीच मन मुटाव होने की चर्चा पहले भी कई बार सुनने को मिली है। इसके बावजूद भी भारतीय जनता पार्टी ने 2014 में पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र और देश के कई राज्यों में अपनी सरकारी बनाई। भारतीय जनता पार्टी लगातार तीसरी बार केंद्र की सत्ता पर काबिज है। इस बीच भारतीय जनता पार्टी ने जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा, मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं को राजनीति से बाहर कर दिया मगर यशवंत सिन्हा को छोड़कर एक भी नेता ने बगावत नहीं की बल्कि भारतीय जनता पार्टी मजबूत होती रही। अब चर्चा वसुंधरा राजे के राजनीतिक तेवरों और केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के बयानों को लेकर हो रही है। चर्चा हो रही है कि वसुंधरा और नितिन गडकरी मिलकर कोई खेल करने वाले हैं।
इसका पता भी 9 सितंबर को लग जाएगा। 9 सितंबर को उपराष्ट्रपति पद का चुनाव है। उपराष्ट्रपति एनडीए घटक दल का होगा या महागठबंधन का इस पर सभी की नजर है। इस पर नजर इसलिए भी है क्योंकि भाजपा और आरएसएस के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।वसुंधरा के हाई कमान के खिलाफ सख्त तेवर और नितिन गडकरी के बयान, उपराष्ट्रपति पद के चुनाव पर क्या राजनीतिक असर डालेंगे इसका पता भी 9 सितंबर को जब परिणाम आएगा तब लग जाएगा। लेकिन भाजपा और आरएसएस के रिश्तों की बात करें तो इनमें खटास के समाचार पहली बार नहीं सुनाई दे रहे हैं। ऐसी खटास पहले भी आती रही है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इससे भारतीय जनता पार्टी को कोई बड़ा नुकसान हुआ हो। जब बात चुनाव की होती है तब भाजपा और आरएसएस के कार्यकर्ता और नेता एकजुट हो जाते हैं और भाजपा की सरकार बनाते हैं। विपक्ष मुगालते में रहकर हाथ मलते रह जाती है इसलिए विपक्ष और विपक्षी नेताओं को भारतीय जनता पार्टी और उसके नेताओं आरएसएस और उसके नेताओं के बीच क्या चल रहा है इस पर ध्यान नहीं देखकर देश की जनता पर अधिक ध्यान देना चाहिए। जनता के मन में भाजपा सरकार के प्रति क्या चल रहा है क्योंकि भाजपा के नेता आरएसएस के कार्यकर्ता विपक्ष को केंद्र की सत्ता में वापसी नहीं करवाएंगे। विपक्ष की केंद्र में वापसी करवाएगी देश की जनता। विपक्ष को अधिक ध्यान देश की जनता की समस्याओं पर देना चाहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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