
-देवेंद्र यादव-

भारतीय जनता पार्टी ने राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले और बाद में अभी तक अपने तीन प्रदेश अध्यक्ष बदल दिए, मगर भाजपा की वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की नाराजगी जस की तस बनी हुई है।
श्रीमती वसुंधरा की नाराजगी विधानसभा चुनाव से पहले शुरू हुई थी, और भारतीय जनता पार्टी ने वसु मैडम की नाराजगी के चलते पार्टी को विधानसभा चुनाव में नुकसान ना हो इसके लिए अपना प्रदेश अध्यक्ष बदलकर सतीश पूनिया को जिम्मा सौंपा था, मग र सतीश पूनिया वसु मैडम की नाराजगी को दूर तो नहीं कर पाए बल्कि प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद सतीश पूनिया खुद मुख्यमंत्री की कुर्सी की दौड़ में शामिल हो गए। नतीजा यह हुआ कि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी हाई कमान ने सतीश पूनिया को अध्यक्ष पद से हटाकर सीपी जोशी को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया।
भाजपा ने ब्राह्मण नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर राजस्थान में सरकार बनाकर सत्ता में वापसी तो कर ली, मगर मुख्यमंत्री सीपी जोशी की जगह एक बार के विधायक भजनलाल शर्मा को बनाया। परिणाम यह निकला की लोकसभा चुनाव में राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी 11 सीट गवा दी।
राजस्थान से लोकसभा चुनाव में भाजपा की 11 सीट कम होने की वजह वसु मैडम की नाराजगी माना जा रहा है। वसु मैडम की नाराजगी का मतलब राजपूत समाज की भाजपा के प्रति बढ़ती नाराजगी भी समझा जा रहा है।
राजस्थान में भाजपा के पास कांग्रेस से कहीं अधिक मजबूत राजपूत नेता मौजूद हैं जिनमें श्रीमती वसुंधरा राजे राजेंद्र सिंह राठौड़ और गजेंद्र सिंह शेखावत प्रमुख हैं।
मगर इन तीनों नेताओं में से एक को भी सीपी जोशी को बदलकर अध्यक्ष नहीं बनाया। बल्कि मदन राठौड़ को अध्यक्ष बनाया। जबकि अध्यक्ष की दौड़ में पहला नाम राजेंद्र सिंह राठौड़ का सुनाई दे रहा था। अब सवाल उठता है कि 5 साल में भाजपा ने अपने तीन प्रदेश अध्यक्ष बदल दिए क्या भाजपा वसु मैडम और राजपूतों की नाराजगी को कम कर पाएगी इसका पता राजस्थान में होने वाले विधानसभा के उपचुनाव में लगेगा।
राजनीतिक गलियारों में मदन राठौड़ के अध्यक्ष बनाए जाने पर चर्चा है कि वह स्वयंसेवक संघ की पसंद है। यदि स्वयंसेवक संघ की पसंद की बात करें तो राजस्थान में अधिकतर समय भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष संघ की पसंद का नेता ही बना है। मगर संघ का नेता प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद राज्य का मुख्यमंत्री नहीं बन पाया। ललित किशोर चतुर्वेदी, गुलाबचंद कटारिया और अरुण चतुर्वेदी जैसे बड़े संघ के नेताओं का उदाहरण सामने है। संघ ने इन नेताओं को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनवाया मगर संघ इनमें से किसी भी नेता को मुख्यमंत्री नहीं बनवा पाया।
अब नजर मदन राठौड़ पर है। मगर मदन राठौड़ और संघ के सामने बड़ी चुनौती किसी भी समय राजस्थान में होने वाले पांच विधानसभा क्षेत्र के उप चुनाव पर है। मदन राठौड़ की अध्यक्षता में भारतीय जनता पार्टी उप चुनाव जीतती है या नहीं।
राजस्थान विधानसभा के उप चुनाव का परिणाम यह भी तय करेगा की वसु मैडम और राजपूत समुदाय की नाराजगी बरकरार है या फिर खत्म हो गई है।
राजस्थान बीजेपी के अध्यक्ष को बदलने का मतलब पार्टी हाई कमान को राजस्थान में भाजपा की लोकसभा सीट कम होने का गम है क्योंकि राजस्थान से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का गहरा लगाव है। मोदी और शाह ने राजस्थान की पूरी 25 सीट में लगातार तीसरी बार जीतने के लिए बड़ी मेहनत की थी। मगर राजस्थान से भारतीय जनता पार्टी राजस्थान में अपनी भाजपा की सरकार होने के बावजूद 11 सीट गवा बैठी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राजस्थान से विशेष लगाव होने का ही परिणाम है कि उन्होंने राजस्थान के सांसद ओम बिरला को लगातार दूसरी बार लोकसभा का स्पीकर बनवाया और राजस्थान से चार सांसदों को केंद्र सरकार में मंत्री नियुक्त किया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

















