
-देवेन्द्र यादव-

गत दिनों मीडिया और राजनीतिक गलियारों में राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे चर्चा में थीं। उनको लेकर यह खबर सुनाई दी कि पार्टी हाई कमान ने वसुंधरा को मना लिया है और उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बड़ी जिम्मेदारी देंगे।
पार्टी हाई कमान ने 2023 में राजस्थान में भाजपा की सत्ता में वापसी होने के बावजूद श्रीमती वसुंधरा राजे को राज्य का मुख्यमंत्री नहीं बनाया था। बल्कि मुख्यमंत्री का निर्णय पार्टी हाई कमान ने पर्ची के माध्यम से किया, और मुख्यमंत्री पहली बार विधायक बने भजन लाल शर्मा बने। तभी से समझा जा रहा था कि वसुंधरा राजे हाई कमान के निर्णय से नाराज हैं। वसुंधरा राजे की नाराजगी का परिणाम था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को राजस्थान में 9 लोकसभा की सीट गवानी पड़ी। लगभग 1 वर्ष बाद अब खबर आ रही है कि पार्टी हाई कमान ने वसुंधरा राजे को मना लिया है और उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बड़ी जिम्मेदारी देंगे। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि पार्टी हाई कमान वसुंधरा राजे को बड़ी जिम्मेदारी देकर अब क्या हासिल करना चाहता है जबकि राजस्थान में विधानसभा के चुनाव होने में अभी 4 साल का वक्त बाकी है। राजस्थान में भाजपा के पास पूर्ण बहुमत है और पार्टी मजबूत है। वही लोकसभा के चुनाव भी 4 वर्ष बाद होंगे, और केंद्र की सत्ता पर लगातार तीसरी बार भाजपा का शासन है। लेकिन भाजपा को केंद्र में 2024 के लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत नहीं मिला। भाजपा की सरकार बैसाखियों पर है, और इन दिनों बिहार को लेकर नीतीश कुमार सुर्खियों में है, जो भारतीय जनता पार्टी की एक बड़ी बैसाखी है। इस बैसाखी के भाजपा से अलग होने को लेकर संशय बना हुआ है शायद इसीलिए पार्टी हाई कमान वसुंधरा राजे की नाराजगी को दूर कर राजस्थान में सक्रिय करना चाहता है ताकि भविष्य में जब भी लोकसभा के चुनाव हो भाजपा को 2024 की तरह बड़ा नुकसान नहीं होने पाए।
एक तरफ वसुंधरा राजे को मनाने की खबर ने राजस्थान की राजनीति में हलचल मचा रखी है तो वहीं दूसरी तरफ लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का अपने निर्वाचन क्षेत्र कोटा में लंबे-लंबे पडाव और उनकी अपने निर्वाचन क्षेत्र में सक्रियता भी इशारा कर रही है कि देश में निकट भविष्य में लोकसभा के चुनाव हो सकते हैं। ओम बिरला का सक्रिय होने का एक कारण यह भी हो सकता है। ओम बिरला 2024 के लोकसभा चुनाव लाखों की जगह हजारों में ही जीत पाए। जबकि पूर्व के दो चुनाव ओम बिरला ने लाखों मतों के अंतर से जीता था। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में यह जीत का अंतर 50000 पर आ गया।

वसुंधरा की नाराजगी ने भी ओम बिरला की जीत के अंतर को कम किया क्योंकि भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल को अपना प्रत्याशी बनाया था। प्रहलाद गुंजल श्रीमती वसुंधरा राजे के खास सिपाहसालार थे। वह पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़े और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से मात्र 50000 वोटो से हारे।
राज्य की उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी का कोटा में आना और कोटा को डूबती कोचिंग से बचाने के लिए पर्यटन का विकास करने की व्यापक योजना बनाना भी राजनीतिक रूप से यह बताता है कि ओम बिरला वसुंधरा राजे की नाराजगी को दिया कुमारी से भरना चाहते हैं।
हाडोती में वसुंधरा प्रभावशाली नेता है और हाडोती के राजपूत समुदाय में वसुंधरा का प्रभाव अधिक है। इसे ओम बिरला अच्छे से समझते हैं। यही वजह है कि ओम बिरला वसुंधरा का राजनीतिक तोड़ जयपुर के पूर्व राजपरिवार से संबद्ध दिया कुमारी के रूप में देख रहे हैं। लेकिन सवाल यही है कि वसुंधरा राजे की नाराजगी को दूर करने का समाचार और ओम बिरला का अपने निर्वाचन क्षेत्र में लगातार बने रहना क्या यह संकेत दे रहा है कि देश में निकट भविष्य में लोकसभा के चुनाव हो सकते हैं?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

















