इस बार नहीं गली भारत विरोध की पाकिस्तानी दाल

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-भारत- सऊदी अरब में बढ़ता सहयोग पाकिस्तान को झटका

-द ओपिनियन-
जी-20 शिखर सम्मलेन पाकिस्तान के लिए बड़ा कूटनीतिक झटका है। खाडी देश जिन्हें पाकिस्त्तान सदा अपना मानता आया और उन्हें सदैव भारत के खिलाफ इस्तेमाल करता रहा। भारत से करीबी रिश्तों के बावजूद खाडी देश एक इस्लामिक देश के नाते पाकिस्तान को सदैव महत्व देते रहे। उसे हर संकट में मदद देते रहे लेकिन इस बार पाकिस्तान ने अवश्य खुद को अलग थलग महसूस किया होगा। 9 व 10सितंबर तक नई दिल्ली में आयोजित जी-20 देशों की बैठक में भाग लेने आए नेताओं में से कोई भी नेता पाकिस्तान की यात्रा पर नहीं गया। मीडिया रिपोर्टोंं के अनुसार पाकिस्तान ने सउदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से इस्लामाबाद आने की खूब मनुहार की लेकिन वे सीधे नई दिल्ली पहुंचे और शिखर सम्मेलन के बाद भारत के राजकीय अतिथि बनकर एक दिन और रूके। इस दौरान दोनों देशों ने आपसी सहयोग बढाने के लिए आठ समझौते किए । इसमें उर्जा क्षेत्र में सहयोग को खासा महत्व दिया गया है। भारत -पश्चिम एशिया- यूरोप तक आर्थिक गलियारा बनाने पर सहमति पत्र पर हस्ताक्षर के बाद
भारत और सउदी अरब में हुए समझौते दोनों देशों के बीच मजबूत होते आर्थिक संबंधों होने का ही प्रतीक है। ऐसे में पाकिस्तान के लिए यह एक कूटनीतिक झटका है क्योंकि सउदी अरब ने उसकी न बात सुनी और ना भारत को लेकर सलाह मांगी। भारत को अपनी उर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए सउदी अरब का सहयोग चाहिए। इसी प्रकार सउदी अरब के लिए भारत एक बड़ा बाजार है और सुरक्षित निवेश की जगह भी है। भारत सउदी अरब को उन्नत मानव संसाधन उपलब्ध कराने के साथ तकनीकी सप्लाई समेत उसकी कईजरूरतें पूरी करता है। हालांकि भारत किसी एक स्रोत पर निर्भर नहीं रहना चाहता है और वह अपनी उर्जा जरूरतों को अन्य देशों से भी पूरा कर रहा है। लेकिन सउदी अरब का साथ उर्जा जरूरतों को पूरा करने लिए भारत के लिए भी अहम है। पीएम नरेंद मोदी और क्राउन प्रिेस मोहम्मद बिन सलमान के बीच हुई द्विपक्षीय बैठक में इस बात सहमति बनी कि 50 अरब डालर की पश्चिमी तट रिफाइनरी परियोजना का काम तेजी से आगे बढ़ाया जाए। इस परियोजना पर दोनों देश पहले से ही सहमत थे । अब बात परियोजना को आगे बढ़ने की है जिस पर दोनों नेताओं ने सहमति जताई। दोनों पक्षों ने हाइडो कार्बन क्षेत्र में अपने आपसी सहयोग का स्तर बढ़ कर इसे समग्र उर्जा गठजोड़ में बदलने पर भी सहमत हो गए। सह सहमति बहुत ही अहम है। आने वाले समय में दोनों देशों के रिश्ते इस उर्जा गठजोड़ से और मजबूत होंगे। सऊदी अरब भारत में 100 अरब डॉलर निवेश करना चाहता है और इसमें यह रिफाइनरी भी शामिल है। दूसरी ओर पाकिस्तान सऊदी निवेश का इंतजार करता ही रह गया। वह सऊदी अरब से लगातार मदद की गुहार करता रहा है लेकिन उसकी बात नहीं बनी। सऊदी अरब को अपने आर्थिक हित भारत के साथ सहयोग बढ़ाने में ज्यादा बेहतर नजर आए। यानी पाकिस्तान की भारत के खिलाफ सऊदी अरब के कान भरने वाली दाल इस बार नहीं गली। पाकिस्तान को यह समझना होगा कि कश्मीर में भारत के रुख का अधिकतर मुस्लिम देश अब पाकिस्तान की भाषा नहीं बोल रहे। वे भारत के साथ व्यापार बढ़ने के लिए लालायित हैं।

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