
-सुनील कुमार Sunil Kumar
अमरीकी शह पर इजराइल हर दिन जिस तरह सौ-पचास बेकसूर फिलीस्तीनियों को गाजा में मार रहा है, उनकी आह असर तो रखती होगी। कबीर कह गए थे कि मरे हुए जानवर के चमड़े से बनी धौंकनी से भभकी हुई आग से लोहा भी भस्म हो जाता है, तो ये तो फिर बेइंसाफी के शिकार फिलीस्तीन के इंसान हैं जिनमें मरने वालों में निहत्थे औरत-बच्चों की बहुतायत है, और कुछ गिने-चुने ही हमास के हथियारबंद लोग हैं। जो लोग सोशल मीडिया पर तरह-तरह की बातों को लेकर ईश्वर का हवाला देते हैं, उन पर थोड़ी हैरानी होती है क्योंकि फिलीस्तीन में तो अभी बचे हुए दसियों लाख लोग बिना छत के हैं, और ऊपरवाले के लिए यह अधिक आसान होगा कि वह उन्हें देख सके। बीच में कांक्रीट की छत रहे तो उसके पार देखने में ईश्वर को कुछ दिक्कत हो सकती है, लेकिन फिलीस्तीनी सरीखे बेघर, बेछत, भूखे और बीमार, कुपोषण के शिकार, बदन के हिस्से खो चुके जख्मी लोगों को तो ईश्वर आसानी से देख लेता होगा। अब ऐसे ईश्वर को देखते हुए देखकर उसे मानने वाले लोगों के मन में क्या आता है उसे वे ही जानें, लेकिन हम इतना जानते हैं कि कबीर के कहे मुताबिक बेकसूर पर किए गए जुल्म लोहे को भी भस्म करने की ताकत रखते हैं, और फिलीस्तीन के दिल से निकली हुई आह की लपट आज अमरीका के लोकतंत्र को जलाकर राख कर रही है।
कल जिन लोगों ने दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामापोसा के साथ अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को अपने दफ्तर में बहस करते, उन्हें धमकाते हुए देखा है, वह एक बहुत दुर्लभ न सही, लेकिन ट्रम्प के पहले वैसे नजारे का कोई इतिहास नहीं रहा है। एक के बाद एक विदेशी मेहमानों, और राष्ट्रप्रमुखों, शासनप्रमुखों के साथ ट्रम्प अपने खुद के दफ्तर में जिस भयानक दर्जे की बदतमीजी कर रहा है, उससे दुनिया में शिष्टाचार की परंपरा ठीक वैसे ही तहस-नहस हो रही है जैसे कि गाजा में फिलीस्तीनियों के मकान इजराइली हमले में ध्वस्त हुए हैं। इसी दफ्तर में ट्रम्प ने इसके पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की, ब्रिटिश प्रधानमंत्री स्टार्मर, और फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रों का ऐसा ही अपमानजनक नजारा पेश किया था। मीडिया के कैमरों के सामने विदेशी अतिथियों को नीचा दिखाना, धमकाना, उनसे परले दर्जे की बदसलूकी करना, यह सब करने वाला ट्रम्प अमरीकी इतिहास का पहला राष्ट्रपति बना है, और उसने अमरीकी लोकतंत्र को घटिया साबित करने में कोई कसर नहीं रखी है।
लेकिन इससे परे भी ट्रम्प सरकार, और उसके खरबपति सहयोगी-सलाहकार जिस तरह पूरी दुनिया में अमरीका का नाम डुबा रहे हैं, वह भी गाजा में भूख से मरते हुए बच्चों के दिल से निकली हुई आह का नतीजा है। वरना किसने यह सोचा था कि जो अमरीका पूरी दुनिया में मदद के तरह-तरह के प्रोजेक्ट चलाते हुए दुनिया में अपना प्रभामंडल बनाए हुए था, उसे ट्रम्प ने कार्यकाल सौ दिन पूरा होने के पहले ही बंद कर दिया, और दुनिया के दसियों लाख भूखों, और गरीबों, बीमारों, और मरणासन्न लोगों की आह ट्रम्प को लगने लगी। एक सूदखोर-कारोबारी तानाशाह की तरह ट्रम्प ने दुनिया के जरूरतमंद तबकों की मदद के हर प्रोजेक्ट को बंद कर दिया, खुद अमरीका के भीतर लाखों लोगों को बेरोजगार कर दिया, पूरी दुनिया से पहुंचे हुए जरूरतमंद शरणार्थियों, या घुसपैठियों को गैरजरूरी हिंसक और अपमानजनक तरीके से निकाल दिया, उन सबकी आह भी इस अमरीकी राष्ट्रपति को लग रही है। फिलीस्तीन के समर्थक छात्रों को जिस तरह से देश निकाला दिया जा रहा है, उसके खिलाफ अमरीकी की ही छोटी-छोटी अदालतें ट्रम्प के खिलाफ फैसले दे रही हैं, और यह नौबत अमरीकी इतिहास में पहली बार आई है कि देश में एक आपातकाल, एक विदेशी हमला जताते हुए ट्रम्प आपातकालीन अधिकारों का इस्तेमाल कर रहा है, और संसद से परे सैकड़ों-हजारों फैसले ले रहा है। दुनिया के बहुत से देशों में अमरीका ने बमबारी करके लाखों लोगों को मारा है, और आज मानो उन तमाम की लाशों की चमड़ी धौंकनी बनकर अमरीकी लोकतंत्र को जला रही हैं। खुद अमरीका के भीतर ट्रम्प ने दुनिया भर में छेड़े हुए टैरिफ-वॉर की वजह से ऐसी भयानक आर्थिक परेशानी खड़ी कर दी है कि कारोबारी आयात नहीं कर पा रहे हैं, आम अमरीकी खरीदी नहीं कर पा रहे हैं, और अमरीकी अर्थव्यवस्था एक अभूतपूर्व और खतरनाक बवंडर के बीच फंस गई है। अफगानिस्तान, इराक हो, सीरिया हो, या फिलीस्तीन हो, लाखों बेकसूरों पर बरसने वाले अमरीकी बमों का हिसाब किसी को तो चुकता करना था, और वह ट्रम्प की शक्ल में अमरीका में हो रहा है जो कि अमरीकी लोकतंत्र को मलबा बनाकर छोड़ रहा है। यह पूरा सिलसिला इतना भयानक खतरनाक है कि अमरीकी संसद, वहां की न्यायपालिका, वहां खुद ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के लोग यह नहीं समझ पा रहे हैं कि चार बरस के कार्यकाल में ट्रम्प अमरीका को कहां ले जाकर पटकेगा।
लोगों को याद रखना चाहिए कि दुनिया का रिवाज है कि आम बोने वाले को आम मिलते हैं, और बबूल बोने वाले को बबूल मिलते हैं। अमरीका की जनता ने पिछले राष्ट्रपति चुनाव में ट्रम्प बोया है, और अब वह बर्बादी की फसल के सामने खड़ी है। दुनिया का इतिहास एक सबसे बड़े लोकतंत्र में ऐसा बददिमाग तानाशाह पहली बार देख रहा है, और खुद अमरीकी जनता अपनी बर्बादी के बाद इस बात पर शायद अफसोस करेगी कि उसने चार बरस की यह तबाही चुनी थी। सरकार और देश को चलाना, दुनिया के तमाम देशों में एक मुखिया देश रहना, पूरी दुनिया में एक शांति कायम करना, इसके लिए एक जनकल्याणकारी इंसान की जरूरत पड़ती है, ट्रम्प जैसे आत्ममुग्ध तानाशाह, सूदखोर कारोबारी, और बदजुबान बदचलन के बस का यह काम नहीं रहता। फिर भी यह अमरीका को गाजा जैसी जगहों के बेकसूर मरने वालों की आह का तोहफा है।
(देवेन्द्र सुरजन की वॉल् से साभार)