गंगा-यमुना को जीवित मां का कानूनी दर्जा जरूरी

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-चम्बल को भी सुरक्षा कवच देने की मांग

-बृजेश विजयवर्गीय-

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बृजेश विजयवर्गीय

नई दिल्ली। राष्ट्रीय जलबिरादरी द्वारा दिल्ली में ‘‘गंगा-यमुना को जीवित मां का कानूनी दर्जा जरूरीः क्यों और कैसे’’ विषय पर बड़ी परिचर्चा आयोजित की गई।
इस परिचर्चा में सर्वसम्मति से यमुना और गंगा नदी समेत सभी नदियों को को जीवित मां का कानूनी दर्जा दिलाने का प्रस्ताव पारित हुआ। इस प्रस्ताव को क्रियान्वित करने के लिए पांच समूहों का गठन किया गया। सबसे पहले समूह में संसद सदस्यों के साथ मिलकर बातचीत करने के लिए सात सदस्यीय एक समूह का गठन हुआ। दूसरे समूह में उच्चतम न्यायालय में चल रहे मुकदमें की पैरवी के लिए वरिष्ठ वकील संजय पारिख जी ने एड़ सुधानंद जी के साथ काम करने की जिम्मेदारी ली। तीसरा समूह में डॉ. इंदिरा खुराना, प्रो. मधुलिका बनर्जी, प्रो. सोनाझरिया मिंज मिलकर मां गंगा-यमुना के आस्था का आधार की विशिष्टता को खोज कर दस्तावेजीकरण करायेंगी। चौथा समूह रमेश शर्मा, डॉ मेजर हिमांशु सिंह, भोपाल सिंह, सुरेश भाई गंगा-यमुना क्षेत्र में यात्राएं करके, चेतना जगाने का कार्य करेंगा। पांचवे समूह में अरुण तिवारी गंगा-यमुना को जीवित ‘मां घोषित क्यों और कैसे किया जाए इस पर पुस्तक तैयार करेंगे। चम्बल संसद के प्रतिनिधियो ने चम्बल समेत सभी नदियों को कानूनी सुरक्षा कवच देने की मांग रखी।
इस परिचर्चा में यह तथ्य भी रखा गया कि, विश्व के अनेक देशों जैसे न्यूजीलैंड की वांगानुई नदी, कोलंबिया की अत्रातो नदी, बांग्लादेश की तुराग नदी, कनाडा की मैग्पी नदी आदि को जीवित इकाई का दर्जा पहले ही दिया जा चुका है। भारत में 2017 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गंगा-यमुना को यह दर्जा दिया था, परंतु सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी। अब इस मुकदमे को पुनः शुरू कराया जायेगा।
इस परिचर्चा मे ंसभी ने संकल्प लिया कि, गंगा-यमुना में अतिक्रमण, प्रदूषण और शोषण के काम नहीं होने देंगे; क्यांकि भारतीय इन्हें सदियों से मां कहते है। वो अलिखित संविधान की भाषा है, उसे लिखित संविधान के प्रकाश में कानूनी दर्जा दिलाने के लिए हम सब संकल्पित है।
संगोष्ठी का निष्कर्ष था कि, जब तक गंगा और यमुना जैसी नदियों को मातृत्व के भाव से ‘जीवित माँ’ का कानूनी दर्जा नहीं मिलता, तब तक उनका वास्तविक संरक्षण संभव नहीं है। यह न केवल सांस्कृतिक और नैतिक जिम्मेदारी है, बल्कि संवैधानिक दायित्व भी है।
इस परिचर्चा में मातृसदन के संस्थापक स्वामी शिवानंद सरस्वती, उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ वकील संजय पारिख, जलपुरुष राजेन्द्र सिंह, सत्यनारायण बोलीसेट्टी,, एड़ विक्रांत शर्मा, रमेश शर्मा, संजय सिंह, अरूण तिवारी, नीरज कुमार, डॉ इंदिरा खुराना, निवेदिता, मनीष कुमार, भरत पाठक, सुधांशु रंगन, मेजर हिमांशु सिंह, प्रेम निवास शर्मा, भोपाल सिंह, अनिल सिंह, दीपक परवतियार, कृष्णपाल सिंह, अजीत, गीतांजली, पारस प्रताप सिह आदि गंगा और यमुना नदी प्रवाह व बेसिन क्षेत्र के 70 से अधिक प्रतिनिधि मौजूद रहे।
(लेखक वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार एवं पर्यावरणविद् है )

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