पटना में विपक्षी दलों की अहम बैठक आज, मतभेद भुलाकर एक जुट होने से ही बनेगी बात

भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए के खिलाफ 2024 के लोकसभा चुनाव में मुकाबले के लिए एक साझा मंच बनाने और एक साझा एजेंडा तय करने के उद्देश्य से जनता दल (यूनाइटेड) के नेता नीतीश कुमार की अगुवाई में आज शुक्रवार को पटना में व्यापक भागीदारी वाली विपक्षी पार्टियों की पहली बैठक आहूत की जा रही है। हालांकि विपक्ष के पास 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर कई विकल्प हैं। फिर भी यदि प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए को गंभीरता से टक्कर देने की योजना है तो उसे मिसाल कायम कर नेतृत्व करना होगा और क्षेत्रीय ताकतों को समायोजित करना होगा। यदि विपक्ष को भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के खिलफ कुछ आत्मविश्वास के साथ मैदान में उतरना है तो एक साझा रणनीति और मंच जरूरी है जो यह सुनिश्चित करे कि सभी 543 लोकसभा क्षेत्रों में एनडीए के खिलाफ एक ही उम्मीदवार खड़ा किया जाए। पटना बैठक इसके लिए बहुत अच्छी तरह से आधार साफ़ कर सकता है।

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विपक्षी मंच पर सबसे पुरानी पार्टी की प्रधानता आज दो कारणों से निर्विवाद है। कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में एक के बाद एक जीत ने साबित कर दिया है कि कांग्रेस के पास अभी भी भाजपा को हराने और उसके डबल-इंजन सरकार के सिद्धांत को ध्वस्त करने की ताकत है। इसके अलावा, पार्टी को तमिलनाडु, महाराष्ट्र, बिहार और झारखंड जैसे प्रमुख राज्यों में भरोसेमंद सहयोगी मिले हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली भारत राष्ट्र समिति ने पहले कांग्रेस के बिना एक संयुक्त मोर्चे का प्रस्ताव रखा था लेकिन अब वह कुछ विमुख होती नजर आ रही है। राव की पार्टी को इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से मुकाबला करना है। इसलिए वह एनडीए के साथ समझौता कर सकती है। ओडिशा के नवीन पटनायक और आंध्र प्रदेश के जगन मोहन रेड्डी के विपक्षी खेमे में शामिल होने की संभावना नहीं है।

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कांग्रेस, अपने दम पर या दीर्घकालिक प्रतिबद्ध सहयोगियों के साथ, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़, असम, बिहार, हिमाचल प्रदेश और जम्मू जैसे राज्यों में जबरदस्त उपस्थिति रखती है। पार्टी की कश्मीर. उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में बहुत कम चुनावी उपस्थिति है। यूपी और पश्चिम बंगाल में तो उसकी क्रमशः समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के साथ होड है। इसी तरह दिल्ली और पंजाब में उसका आप से सीधा-सीधा मुकाबला है।

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इसके बावजूद विपक्षी दलों के पास एक साथ आने के लिए कई बाध्यकारी कारण हैं और विभिन्न नेता यह तथ्य स्पष्ट तौर पर जाहिर भी कर चुके है। उनमें से कुछ सामान्य हैं जबकि कुछ राज्य-विशिष्ट हैं। विपक्षी नेताओं के खिलाफ भाजपा द्वारा केंद्रीय जांच एजेंसियों के इस्तेमाल से उनमें से अधिकांश डरे हुए हैं। केंद्रीय एजेंसियों के इस्तेमाल और ऑपरेशन लोटस कुछ ऐसे कारण हैं जिसकी वजह से विपक्षी दलों को एकजुट होकर भाजपा का मुकाबला करना होगा। दिल्ली सरकार को उसकी संवैधानिक शक्तियों से वंचित करने के लिए लाया गया नवीनतम अध्यादेश भी एक चिंता का विषय है।

इन मुद्दों को संयुक्त रूप से और अलग-अलग संबोधित करना कांग्रेस पर निर्भर है। आप पहले ही धमकी दे चुकी है कि अगर कांग्रेस केंद्रीय अध्यादेश पर उसकी चिंताओं का समाधान नहीं करती है तो वह विपक्षी एकजुटता से बाहर निकल जाएगी। तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी विपक्षी मंच का हिस्सा हो सकती हैं, जो कांग्रेस की पेशकश करने की क्षमता पर निर्भर करता है जिसे वे अस्वीकार नहीं कर सकते।

 

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