देवेन्द्र कुमार शर्मा

जैसे जैसे मनुष्य ने अपनी सुख सुविधाओं का विकास किया है, उससे पर्यावरण को बहुत हानि हो रही है और प्रदूषण बढ़ रहा है। प्रदूषण कई प्रकार के हैं और इन में प्रमुख हैं वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण। वैसे तो ध्वनि प्रदूषण और प्रकाश प्रदूषण भी हमें और सभी जीवधारियों को प्रभावित करते हैं लेकिन वायु प्रदूषण हमारे स्वास्थ्य के लि ए बहुत हानिकारक है। जल प्रदूषण से तो हम बच सकते हैं लेकिन वायु प्रदूषण से बचना आसान नहीं है। आज वायु में वाहनों और कल कारखानों से निकला धुआं दिन रात घुल रहा है और वायुमंडल में प्राण वायु या ऑक्सीजन की कमी होती जाती है। हम यह नहीं समझ रहे कि पॉलीथिन और प्लास्टिक का कचरा भी ऑक्सीजन के उत्पादन को प्रभावित करता है। ये तो सभी जानते हैं कि ऑक्सीजन हमें पेड़ों से मिलती है लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि 70 प्रतिशत ऑक्सीजन हमें समंदर से मिलती है। हमें पता है कि पॉलीथिन और प्लास्टिक नष्ट नहीं होता है। जो पोलीथिन हम काम निकल जाने के बाद सड़क पर या कूड़े के ढेर में फेंक देते हैं वो पर्यावरण के लिए बहुत ही हानिकारक है। बहुत से अज्ञानी तो ऐसे भी हैं जो अपने घर की सफाई करके कचरे को नाले में फेंक देते हैं। बरसात में जब नदी नाले उफान में होते हैं तो ये प्लास्टिक का कचरा नदी से होता हुआ समुद्र में पहुँच जाता है। समुद्र की तलहटी में बहुत तरह की वनस्पति होती हैं जो लगातार ऑक्सीजन उत्पन्न करती है। ये ऑक्सीजन समुद्र में रहने वाले जीव जंतुओं को जीवन देती है और उस के बाद पानी से बाहर आकर वायुमंडल में मिल जाती है।

घुट रहा है समुद्र की वनस्पती का दम

अब देखिये, बढती जनसँख्या के दवाब के कारण एक तरफ तो पेड़ और जंगल खत्म होते जा रहे हैं दूसरी ओर समुद्र में पोलीथिन व प्लास्टिक की जमा होने वाली परत वहां की वनस्पति को ढक रही है, जिस से उसका दम घुट रहा है और ऑक्सीजन उत्पन्न करने की क्षमता लगातार घट रही है। इसलिए हमें इस खतरे को पहचान कर पोलीथिन के उपयोग को कम करना चाहिए। शादी समारोहों में डिस्पोजेबल प्लास्टिक के गिलास और कटोरियों की जगह स्टील के बर्तन प्रयोग करने चाहिए। सिखों के गुरुद्वारों में जहाँ रोजाना सेकड़ों, हजारों लोग लंगर में भोजन करते हैं वहां प्लास्टिक का कोई भी आइटम प्रयोग नहीं किया जाता। वहां सारे बर्तन स्टील के होते हैं तो इसी तरह शादियों और अन्य समारोहों में भी स्टील और कांच की क्राकरी प्रयोग में लाई जानी चाहिए जिसे धो कर दोबारा काम में लिया जा सकता है।

प्रकृति के संतुलन के लिए पेड़ों को बचाना होगा

आज हालत ये है कि लाखों टन पॉलीथिन और प्लास्टिक का उत्पादन रोजाना हो रहा है और यह कचरा जमीन के ऊपर और नदी नालों व समुद ्रमें जमा हो रहा है। इसलिए प्लास्टिक की पानी की बोतल और पॉलीथिन को इधर उधर न फेंक कर एक निर्धारित जगह जमा किया जाना चाहिए जहाँ से उसे उठा कर फिर से रीसायकल किया जा सके। जब देश के नागरिक जागरूक होंगे तभी इस धरती पर हमारी आने वाली पीढिय़ों को रहने योग्य अनुकूल वातावरण मिल पाएगा। प्रकृति के संतुलन को बचाने के लिए हमें पेड़ों को कटाने से बचाना चाहिए और नए वृक्ष लगाने पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए।
(लेखक पर्यावरण और वन्य जीव के क्षेत्र में कार्यरत हैं)

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