किशन भावनानी
भारत त्योहारों, पर्वों, उत्सवों, भाषाओं और मान्यताओं के अभूतपूर्व संगम वाला देश है। हर त्यौहार उमंग और उत्साह के साथ मनाते ही हैं परंतु रक्षाबंधन उत्सव पर अलग ही उत्साह होता है। इसके इतिहास में जाएंगे तो इस पर्व की 326 ई पू से कलाई पर सूती धागा बांधने से शुरुआत हुई। यह धागा एक रक्षा का बंधन होता है जिसे पौराणिक काल से देवताओं द्वारा शिष्यों को रक्षा के लिए, पत्नी द्वारा पति के युद्ध में जाने पर उसकी सुरक्षा के लिए भी बांधे जाते थे। वक्त का पहिया आगे बढ़ता गया और आज इस पर्व को भाई बहन के त्योहार तक सीमित कर दिया गया है। जिसमें बहन भाइयों को राखी बांधकर अपनी सुरक्षा, समृद्धि और रक्षा की अपेक्षा करती है। वस्तुत: यह त्योहार सिर्फ भाई-बहन तक सीमित नहीं है बल्कि नारी रक्षा का प्रण है। सही मायने में यह त्योहार नारी के प्रति रक्षा की भावना को बढ़ाने के लिए बनाया गया है, इसलिए जरुरत हैं इस त्योहार के सही मायने को हम समझें एवं अपने बच्चों को इसकी परम्परा समझायें तब ही यह त्योहार और भी अधिक खूबसूरत होगा। यह त्योहार भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधता है। इस दिन बहन अपने भाई के मस्तक पर टीका लगाकर रक्षा का बन्धन बांधती है, जिसे राखी कहते हैं। यह त्योहार प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं।
रक्षाबंधन के संस्कृत में श्लोकों की व्याख्या करें तो…

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।

तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।

अर्थ जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं। हे रक्षे (राखी), तुम अडिग रहना। अपने रक्षा के संकल्प से कभी भी विचलित मत होना।

पश्येम शरद: शतं जीवेम शरद: शतं श्रुणुयाम शरद: शतंप्रब्रवाम शरद: शतमदीना: स्याम शरद: शतं भूयश्च शरद: शतात्।।

इस प्रार्थना में निहित भाव कुछ ऐसे हैं- मेरे भैया, सौ वर्षों तक आँखों का प्रकाश स्पष्ट बना रहे। आप सौ साल तक जीते रहें; सौ साल तक आपकी बुद्धि समर्थ रहे,आप ज्ञानी बने रहे; आप सौ साल तक बढ़ते रहें, और बढ़ते रहें; आपको पोषण मिलता रहेें।

मम भ्राता! प्रार्थयामहे भव शतायु- ईश्वर सदा त्वाम् च रक्षतु।
पुण्य कर्मणा कीर्तिमार्जयजीवनम् तव भवतु सार्थकम् ।।

अर्थ-मेरे भैया! प्रार्थना है कि आप सौ साल जियें, ईश्वर सदा आपकी रक्षा करें,पुण्य कर्मों से कीर्ति अर्जित करें और इस तरह आपका जीवन सार्थक हो।
अत: उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि रक्षाबंधन पर्व पर नारी के प्रति रक्षा की भावना बढ़ाने का प्रण करें। रक्षाबंधन को विस्तृत अर्थ में लेकर समाज में नारी को सुरक्षा देकर दृढ़ समृद्ध और सक्षम बनाने का प्रण लेकर मूल अस्तित्व से भटकने से बचाएं।
(लेखक वरिष्ठ लेखक और स्तंभकार हैं)

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