बांग्लादेश में हालात जल्द सामान्य होने के आसार कम !

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प्रतीकात्मक फोटो

बदले माहौल में न्यायापालिका भी दहशतजदा है। ऐसे में प्रशासन कैसे निर्भय होकर काम कर सकेगा, यह संभव नजर नहीं आता। हालात ऐसे ही बने रहने पर अराजकता का खतरा बढ़ जाएगा। हालात आराजक हुए तो वहां रह रहे अल्पसंख्यकों को खासकर हिंदुओं को बड़े मुश्किल हालात का सामना करना पड़ सकता है।

-न्यायपालिका भी दबाव में, न्यायाधीशों के इस्तीफे दे रहे हैं साक्षी
-हिंदुओं पर हमले अराजकता का संदेश

 

-द ओपिनियन डेस्क-

बांग्लादेश में हालात जल्द सामान्य होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। लगता है अंतरिम सरकार के मुखिया मुहम्मद यूनुस के हाथों में कमान आने के बावजूद शासन प्रशासन अब भी आंदोलनकारी छात्रों के आगे विवश नजर आता है। दूसरी ओर पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के समर्थक भी शनिवार को सड़कों पर उतर आए और गोपालगंज कैंप में उनकी कुछ जगह पर कानून व्यवस्था संभाल रहे सैनिक दस्तों से झड़प होने की खबर है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार प्रदर्शनकारियों ने सेना के एक वाहन को आग के हवाले कर दिया। घटना में सेना के पांच जवानों समेत 15 लोगों के घायल होने की खबर हैं। खबर यह भी है कि गोपालगंज के कोटालीपारा में जुटे हजारों अवामी लीग कार्यकर्ताओं ने कहा कि शेख हसीना को देश छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था। उन्होंने संघर्ष के जरिए उन्हें वापस लाने की शपथ ली। अब यदि परस्पर विरोधी गुट सड़कों पर उतरे और टकराव बढ़ा तो हालात और बिगड़ने का खतरा है। क्योंकि शेख हसीना भी आधार विहीन नेता तो हैं नहीं। इसलिए यूनुस को कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिएं।
वहीं आंदोलनकारी छात्र भी सड़कों पर हैं और प्रशासन व न्यायपालिका भी इस हालात से खौफजदा नजर आती है। छात्रों की चेतावनी के बाद बांग्लादेश के मुख्य न्यायाधीश ने इस्तीफा दे दिया। उनके अलावा भी चार और जजों ने भी इस्तीफा दे दिया है। साफ है कि बदले माहौल में न्यायापालिका भी दहशतजदा है। ऐसे में प्रशासन कैसे निर्भय होकर काम कर सकेगा, यह संभव नजर नहीं आता। हालात ऐसे ही बने रहने पर अराजकता का खतरा बढ़ जाएगा। हालात आराजक हुए तो वहां रह रहे अल्पसंख्यकों को खासकर हिंदुओं को बड़े मुश्किल हालात का सामना करना पड़ सकता है।
बांग्लादेश में वर्तमान में चार प्रमुख सियासी ताकतें हैं। इसमें से एक अवामी लीग पर्दे के पीछे पहुंच गई है। वह सभी की आंखों की किरकिरी बन चुकी है। इसलिए फिलहाल उसकी राजनीतिक शक्ति क्षीण हो चुकी है। इसके अलावा खालिदा जिया की पार्टी बीएनपी, जमात-ए-इस्लामी और आंदोलनकारी छात्र है। इन सबसे उपर सेना है। सत्ता की असली ताकत सेना के पास ही है। इसके अलावा प्रशासन तंत्र है और देश के हालात सुधारने में इस तंत्र की अहम भूमिका है। देश के हालात सुधारने में प्रशासन तंत्र और सेना की अहम भूमिका होगी क्योंकि छात्रों, जमात और बीएनपी की सियासी महत्वाकांक्षा अलग हैं तभी तो निशाने पर अल्पसंख्यक हिंदू और अवामी लीग के नेता हैं। लगता है वे अपना सियासी स्कोर बराबर करना चाहते हैं। ऐसे में अंतरिम सरकार के मुखिया यूनुस के सामने देश में सामान्य स्थिति की बहाली अहम चुनौती है। सेना पर्दे के पीछे है और आगे भी वह पर्दे के पीछे रहकर अपनी भूमिका निभा सकती है। अब देखना है सेना नागरिक प्रशासन को कहां तक स्वतंत्रता देती है और कहां तक अंकुश रखती है। यदि हालात नहीं सुधरे और अवामी लीग के समर्थक भी सड़कों पर आ गए तो फिर बांग्लादेश को अराजक स्थिति से बाहर निकालना और भी मुश्किल होगा। मोहम्मद यूनुस को इस बात पर गौर करना चाहिए कि अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ हिंसा अभी थमी नहीं है और इसमें इस बदलाव के सूत्रधार शामिल हैं। बांग्लादेश हिंदू, बौद्ध, ईसाई एकता परिषद और बांग्लादेश पूजा उद्यापन परिषद के अनुसार, शेख हसीना की सरकार के जाने के बाद से 52 जिलों में अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों पर कम से कम 205 हमले किए गए हैं। इस डर के मारे रोज लोग भारत आने के लिए भारतीय सीमा पर पहुंच रहे हैं। शनिवार को चिटगांव में हमलों के खिलाफ हिंदू समुदाय ने बड़ा प्रदर्शन किया, जिसमें हजारों लोग शामिल हुए।

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