
मेरा सपना …11
-शैलेश पाण्डेय-
डिज्नीलैंड परिसर में कुछ देर विश्राम और पेट पूजा के बाद फिर भ्रमण पर निकले । जो कुछ अब तक राइड्स का रोमांचक अनुभव रहा था उसके बाद अब और राइड्स के प्रति आकर्षण नहीं बचा था लेकिन डिज्नीलैंड की खूबसूरत संरचनाओं को देखने का आकर्षण मन में था। ऐसे में दो और विकल्प बचे थे। पहला कृत्रिम केनाल में दो मंजिला बोट की सैर और दूसरा भाप के इंजन से संचालित ट्रेन का सफर। क्योंकि दोपहर के दो बज चुके थे और पांच बजे हमें टूर मैनेजर राहुल जाधव के निर्देश के अनुसार वापसी के लिए तय स्थल पर एकत्र होना था। इसलिए फैसला किया कि जितना हो सके दोनों सवारी करने का प्रयास करते हैं।

जिस जगह बैठकर हमने साथ में लाए भोजन के पैकेट से सैण्डविच वगैरह खाए थे उसी के सामने क्रूज की सुविधा थी। हम वहां जाकर लाइन में लग गए। यूरोप में हर जगह लाइन से ही काम होता है। हमारे यहां की तरह धक्का मुक्की नहीं है। चाहे कितनी भीड़ हो और आपका नंबर आए या नहीं, भले ही आपकी ट्रेन या फ्लाइट तक छूट जाए लाइन नहीं तोड़ सकते। क्रूज पर भी जब तक हमारा नंबर आता वहां तैनात सुरक्षा स्टॉफ ने हमें रोक दिया क्योंकि बोट पर क्षमता के अनुसार लोग सवार हो चुके थे। ऐसे में इंतजार अथवा वहां से रवाना होने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। हमने इंतजार को तवज्जो दी और लगभग आधे घंटे बाद हमारा बोट का सफर शुरू हुआ। लेकिन सब्र का फल मीठा निकला क्योंकि परिसर में घूमने के दौरान हमने जों देखा था उससे बेहतर बोट से नजर आया। इस दौरान ही डिज्नीलैंड के आकार और उसके निर्माण की लागत और जबरदस्त प्लानिंग का अहसास हुआ।
पिछले एपीसोड में जिस बिग थंडर माउंटेन रेलरोड का जिक्र किया था उसका सफर कितना रोमांचक (मेरी नजर में घातक) था उसका पता चला जब अलग-अलग एंगल से थंडर माउंटेन ट्रेन को कई बार तेजी से घूमते और उपर चढ़ने के बाद झटके से नीचे की ओर तेजी से जाते देखा। वहां एक साथ दो से तीन ट्रेन संचालित होती हैं इसलिए थोड़ी-थोड़ी देर में यह नजारा देखने को मिल जाता था। बोट के सफर के दौरान ही कृत्रिम केनाल के किनारे निर्मित संरचनाओं का मनमोहक नजारा और उंचाई से पूरे परिसर को देखने का मौका मिला। करीब आधे घंटे का यह सफर आनंददायक रहा।

इसके तुरंत बाद अजात ने अपनी पसंदीदा आइसक्रीम खरीदी तो मैंने केपीचीनो कॉफी का आनंद लिया। यहां एक खास बात थी कि केपीचीनो कॉफी की कीमत वही साढ़े चार या पांच यूरो थी जो बाहर किसी रेस्त्रां या छोटी स्टॉल पर होती है। हमारे यहां की तरह नहीं कि आप मल्टीप्लेक्स या मॉल इत्यादी में जाएं तो कई गुना ज्यादा कीमत वसूली जाए।
वहां से हम आगे बढ़े तो एक जगह मिकी माउस और डोनाल्ड डक नजर आए। यहां उनसे हाथ मिलाने और साथ फोटो खिंचाने की बच्चों में होड़ मची थी। लेकिन यह निशुल्क नहीं था। जैसे मिकी माउस या डोनाल्ड डक किसी बच्चे से हाथ मिलाता उस बच्चे की खुशी देखने लायक होती थी। हमारे पास समय नहीं बचा था इसलिए मिकी माउस को छोड़ कर परिसर से बाहर जाने से पहले डिज्नीलैंड पार्क के चारों ओर का चक्कर लगाने वाली भाप के इंजन से संचालित ट्रेन के सफर का आनंद उठाने का फैसला किया। यह न तो आज की तरह की ट्रेन थी न टॉय ट्रेन।
एक डिब्बे में आठ लोगों के बैठने का प्रावधान था। इसकी लाइन में लगे तो पर्यटकों को अलग-अलग ब्लॉक में खड़ा कर देते हैं और एक-एक कर सवारियों को चढ़ाते हैं। इस प्रक्रिया में देखा कि किसी में पांच सवारी थी तो कोई डिब्बा खाली छोड़ दिया था। हमारा नंबर आने वाला था तब तक ट्रेन रवाना हो गई। यह बिल्कुल वैसा अनुभव था कि आप स्टेशन पहुंचे और आपकी आंखों के सामने से ट्रेन निकल जाए। मेरे साथ जयपुर और अलवर में ऐसा एक नहीं कम से कम सात-आठ बार हुआ है। लेकिन यहां बुरा इसलिए लगा कि ट्रेन के एक दो डिब्बे खाली छोड़ दिए थे या कुछ में आठ की क्षमता की बजाय चार-पांच लोग की सवार थे। बाद में जब सफर किया तो समझ आया कि क्योंकि यह आकार में छोटी ट्रेन है और कई तरह के ऊँचे नीचे रास्तों से गुजरती है इसलिए संतुलन के लिए ऐसा किया जाता है। खैर हमारा इंतजार ज्यादा देर का नहीं रहा। यहां भी एक से अधिक ट्रेन संचालित हैं इसलिए कुछ समय बाद ही दूसरी ट्रेन आ गई और हमें सवारी का मौका मिल गया।

लोको पॉयलट और अन्य स्टॉफ परम्परागत पोशाक में सजे धजे थे और आपका मुस्कुराहट के साथ स्वागत करते। जब ट्रेन का सफर शुरू हुआ तो रास्ते में कई स्टेशन आए तो कृत्रिम झीलें, नदी, झरने भी देखने को मिले जिनमें बतख और खरगोश जैसे पशु पक्षी विचरण कर रहे थे। एक दो स्टेशन पर ट्रेन रूकी और उसमें औपचारिता के लिए कुछ यात्रियों को चढ़ाया भी गया जैसे हम अपने यहां छोटे स्टेशनों पर देखते हैं। यहाँ भी स्टेशन मास्टर झंडी दिखने को तैयार मिले। रस्ते में परम्परागत सिग्नल प्रणाली थी लेकिन सञ्चालन ऑटोमेटिक था. पूरा सफर मजेदार रहा और इस दौरान पूरा परिसर स्पष्ट और सहजता से देखने को मिल गया। जब वापस अपने स्टेशन पर उतरे तो रेलवे स्टॉफ ने मुस्कुराहट के साथ अभिवादन किया।
अब डिज्नीलैंड को विदा करने से पहले कुछ समय बचा था ऐसे में अजात ने वहां के अधिकृत स्टोर से मिकी माउस और डोनाल्ड डक जैसे खिलौने तथा की-चेन समेत अन्य स्मृति चिन्ह खरीदे। इनकी कीमत बहुत ज्यादा थी। फिर हम एक्जिट गेट से बाहर निकले तो एक बार मुड़ कर डिज्नीलैंड को भरपूर निगाहों से निहारा क्योंकि यहां इस अभूतपूर्व स्थल को देखने से ज्यादा खुशी उन बच्चों के उल्लासित चेहरे देखकर और उनकी किलकारियों को सुनने के साथ अपने बचपन के दिनों की यादों के ताजा होने की ज्यादा थी। हम इस बीच तय स्थल पर टूर मैनेजर राहुल जाधव के पास पहुँच गए जहां पहले से हमारे कुछ टूर साथी मौजूद थे तो कुछ दो से पांच मिनट के अंतराल में पहुंच गए। सभी थकान से चूर लेकिन प्रफुल्लित नजर आ रहे थे। राहुल ने होटल के लिए रवाना होने के लिए बस में बैठने के बाद पूछा भी कि कैसा रहा अनुभव तो सभी ने एक साथ जवाब दिया एक्सीलैंट! रास्ते में एक इंडियन रेस्त्रां में भोजन किया और होटल पहुंचे जहां से अगले दिन सुबह बेल्जियम के ब्रुसेल्स शहर के लिए रवाना होना था। जब होटल में इन्तजार कर रहीं नीलम जी को दिनभर का रोमांचक अनुभव बताया तो उनके पास अफ़सोस करने के अलावा कुछ नहीं था।

















