लेटरल एंट्रीः चुनाव की चुनौती पड़ी भारी

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-विपक्ष के विरोध पर सरकार ने खीेंचे पीछे कदम

-द ओपिनियन डेस्क-

केद्र सरकार ने लेटरल एंट्री से विभिन्न मंत्रालयों में 45 पदों पर अफसरों की भर्ती से अपने कदम पीछे खींच लिए हैं। संघ लोक सेवा आयोग द्वारा सीघी भर्ती की घोषणा के साथ ही इसका विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस ने जोरदार विरोध किया। बाद में लोजपा नेता व केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान और जदयू भी विरोध में आ गए। विरोध इस बात पर किया गया कि सीधी भर्ती के माध्यम से एससी,एसटी और ओबीसी से आरक्षण छीनने का प्रयास किया जा रहा है। विपक्ष के साथ साथ राजग के भीतर ही विरोध के सुर मुखर हुए तो पीएम मोदी ने ही इस पर कदम आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया। क्योंकि जल्द ही चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होने है। इनमें से दो राज्यों हरियाणा व जम्मू कश्मीर के लिए तो तारीख भी घोषित की जा चुकी है। दो अन्य राज्य महाराष्ट्र और झारखंड में अभी तिथि घोषित होनी है। लेकिन वहां पर भी चुनाव इसी साल होेने है। संभवतः इसीलिए सरकार ने कदम वापस खींचने का फेसला किया है।

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केंद्र सरकार की ओर से यूपीएससी से कहा गया है कि वो लेटरल एंट्री से नियुक्ति न करे। कार्मिक विभाग के मंत्री जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी चेयरमैन प्रीति सूदन को इस बारे में एक पत्र लिखा है। पत्र में कहा गया है कि इस नीति को लागू करने में सामाजिक न्याय और आरक्षण का ध्यान रखा जाना चाहिए। दरअसल, लोकसभा चुनावों में आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा विपक्ष के निशाने पर रही और इसका उसको सियासी नुकसान भी उठाना पड़ा। संभवतया अब इस मुद्दे पर राजनीति गरमाती देख उसने तत्काल अपने कदम वापस ले लिए।

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जितेंद्र सिंह ने पत्र में कांग्रेस सरकारों के कार्यकाल में बिना आरक्षण के लेटरल एंट्री का भी जिक्र किया। उन्होंने लिखा, कई मंत्रालयों और यूआईडीएआई के प्रमुखों जैसे पदों पर बिना आरक्षण की प्रक्रिया का पालन किए ही भर्तियां की गई थीं। यह बात भी सही है कि डाॅ मनमोहन सिंह के कार्यकाल में कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में 2005 में गठित प्रशासनिक सुधार आयोग ने इस तरह की भर्तियों का सुझाव दिया था ताकि उन क्षेत्रों में जहां विशेषज्ञों की जरूरत हो , निजी क्षेत्रों से लोगों को लाया जा सके। यह आइडिया बूरा नहीं है बशर्तें कि भर्ती सही और उपयुक्त लोगों की जाए।
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भर्तियों से पीछे हटने से कांग्रेस गद् गद्
स्रकार के इस फैसले से कांग्रेस गद् गद् है। आखिर उसके विरोध के चलते सरकार को कदम वापस खींचने पड़े । कांग्रेस का कहना है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेताओं के विरोध के कारण ही केंद्र सरकार को ‘लेटरल एंट्री‘ से संबंधित विज्ञापन को निरस्त करने का निर्णय लेना पड़ा। कांग्रेस का कहना है कि एक बार फिर मोदी सरकार को संविधान के आगे झुकना पड़ा है। यह बाबासाहेब के संविधान की जीत है। यह दलित, शोषित, पिछड़ों की जीत है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर साझा एक पोस्ट में यह बात कही। वहीं, वहीं राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर लिखा कि संविधान और आरक्षण व्यवस्था की हम हर कीमत पर रक्षा करेंगे। भाजपा की ‘लेटरल एंट्री‘ जैसी साजिशों को हम हर हाल में नाकाम कर के दिखाएंगे। मैं एक बार फिर कह रहा हूं – 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को तोड़ कर हम जातिगत गिनती के आधार पर सामाजिक न्याय सुनिश्चित करेंगे।

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