
कहो तो कह दूं।
-बृजेश विजयवर्गीय-

(स्वतंत्र पत्रकार)
प्रशासनिक शक्तियों का विकेंद्रीकरण जिला बनाने से ज्यादा महत्वपूर्ण है। 19 नए जिले बनाकर राज्य सरकार ने जो उपहार प्रदेश की जनता को दिया है ,मेरा मानना है कि शक्तियों का विकेंद्रीकरण करें बिना जिलों को मजबूत नहीं बनाया जा सकता। स्पष्ट है कि जितने भी जिले बने हुए हैं वहां पर अधिकांश कलेक्टर अपने आप को असहाय महसूस करते हैं क्या यह उचित नहीं होता कि शक्तियों का विकेंद्रीकरण किया जाए तभी नए जिले बनाना सार्थक होगा। अन्यथा नहीं। प्रदेश की जनता ने देखा है कि कुछ नगर निगम को दो भागों में विभाजित करने के बाद भी व्यवस्थाओं में कोई सुधार नहीं दिखाई दिया अपितु जनता के संसाधनों पर ही तरीके से बहुत भार बढ़ाया गया जहां नगर निगम का भी विभाजन हुआ वहां पार्षदों की संख्या तो बढ़ गई लेकिन अधिकारियों और कर्मचारियों की संख्या नहीं बढ़ी कार्य की गुणवत्ता में तनिक भी सुधार दिखाई नहीं दे रहा अब कैसे माना जाए कि जिलों का विभाजन होने पर प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार होगा या नए कलेक्टर पुलिस अधीक्षक को के बंगलों भवनों के निर्माण सरकारी मशीनरी में बढ़ोतरी से एक वर्ग विशेष को हो सकता है कुछ लाभ हो ,आम जनता को लाभ मिलेगा यह समझना बहुत बड़ी भूल है क्योंकि आज भी शक्ति का केंद्र मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल में ही निहित है कलेक्टरों की हैसियत बड़े बाबू से अधिक नहीं है वह कुछ भी करने में अपने को अक्षम मानते हैं। हजारों करोड़ रुपए कहां से आएंगे और कि कैसे आएंगे यह अभी अस्पष्ट है। विधानसभा चुनाव के पहले मुख्यमंत्री जी ने जुरूर मास्टर स्ट्रोक खैला है अब देखना है कि भविष्य में जिलों को क्रियान्वित करने के लिए संसाधन कहां से और कैसे जटेंगे यह आने वाली सरकार पर निर्भर करेगा।
-बृजेश विजयवर्गीय, स्वतंत्र पत्रकार