सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के नोटबंदी के फैसले को सही बताया

-4-1 के बहुमत से सुनाया सरकार के पक्ष में फैसला

-न्यायाधीश बीवी नागरत्ना ने जताई असहमति

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के नवंबर 2016 में 1,000 और 500 रुपए के करेंसी नोटों को चलन से बाहर करने के फैसले को वैध बताया है। पांच सदस्यीय पीठ ने 4-1 से बहुमत से फैसला दिया। न्यायमूर्ति बी.एन. नागरत्ना ने असहमतिपूर्ण निर्णय दिया।

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने अन्य न्यायाधीशों की ओर से फैसला सुनाते हुए कहा कि हालांकि इस प्रकरण में सुनवाई के लिए शुरू में नौ मुद्दे थे। लेेकिन इनमें छह मुद्दों को फिर से तैयार किया। इसमें प्रमुख प्रश्न क्या केन्द्र सरकार को धारा 26(2) आरबीआई अधिनियम के तहत निहित शक्ति का उपयोग पूरी श्रृंखला के लिए किया जा सकता है? क्या 8 नवंबर, 2016 की विवादित अधिसूचना आनुपातिकता के आधार पर रद्द करने योग्य है?
न्यायाधीश बीआर गवई द्वारा लिखे गए बहुमत के विचार को जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, ए एस बोपन्ना और और वी रामासुब्रमण्यन ने सहमति दी। जबकि न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने अपने असहमतिपूर्ण विचार में फैसला सुनाया कि 8/11 की अधिसूचना द्वारा शुरू की गई केंद्र की कार्रवाई कानून के विपरीत और गैरकानूनी थी। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने कहा कि नोटबंदी को संसद से एक अधिनियम के माध्यम से लानी चाहिए थी, न कि सरकार द्वारा।
नोटबंदी को गलत और त्रुतिपुर्ण बताने वाली 3 दर्जन से ज्यादा याचिकाओं को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र के इस निर्णय में कुछ भी गलत नहीं था। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि ये फैसला रिजर्व बैंक की सहमति और गहन चर्चा के बाद लिया गया है। इस बीच कोर्ट ने इस फैसले में कई बड़ी टिप्पणियां भी की।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि सरकार की आर्थिक नीति होने के कारण निर्णय को पलटा नहीं जा सकता है। कोर्ट ने इसी के साथ कहा कि 8 नवंबर, 2016 को लाई गई नोटबंदी की अधिसूचना वैध थी और नोटों को बदलने के लिए दिया गया 52 दिनों का समय भी एकदम उचित था।
उल्लेखनीय है कि नोटबंदी के खिलाफ कांग्रेस नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम ने भी याचिका दायर की थी, याचिका में कहा गया था कि केंद्र का यह फैसला गलत और त्रुतिपुर्ण है।

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