
-देवेन्द्र यादव-

हरियाणा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार के बाद क्या इंडिया गठबंधन के सहयोगी दल कांग्रेस को कमजोर समझने की भूल कर रहे हैं। विशेषकर महाराष्ट्र की शिवसेना उद्धव पार्टी के नेताओं के व्यवहार से तो ऐसा ही महसूस हो रहा है।
महाराष्ट्र चुनाव की घोषणा हो चुकी है मगर इंडिया गठबंधन में सीटों के तालमेल में पेंच फंसा हुआ है। हरियाणा विधानसभा के चुनाव परिणाम आने से पहले शिवसेना उद्धव कांग्रेस और कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की तारीफ करते हुए नहीं थकते थे लेकिन हरियाणा के चुनाव परिणाम आए उसके बाद शिवसेना उद्धव के नेताओं के कांग्रेस और कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के प्रति स्वर बदल गए।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा तो यह भी होने लगी की शिवसेना उद्धव के बड़े नेता भाजपा के बड़े नेताओं के संपर्क में हैं। सवाल खड़ा हुआ कि क्या महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन टूट जाएगा। सवाल यह भी खड़ा हुआ कि क्या महाराष्ट्र में शिवसेना उद्धव का विधानसभा चुनाव में जम्मू और कश्मीर की पार्टी पीडीपी के जैसा हश्र होगा, जो इंडिया गठबंधन और राहुल गांधी की राजनीतिक ताकत को समझने में भूल कर गई थी।
पीडीपी जम्मू कश्मीर चुनाव में अपना बड़ा राजनीतिक नुकसान करवा बेठी। हरियाणा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार के बाद राहुल गांधी ने महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव की कमान पूरी तरह से अपने हाथ में ले ली है। प्रत्याशियों के चयन और सहयोगी दलों के साथ सीट शेयरिंग की कमान भी राहुल गांधी ने अपने हाथ में ले ली है। ऐसा पहली बार देखा है जब राहुल गांधी ने सारी कमान अपने हाथ में ली है जो कांग्रेस के लिए सही भी है। कांग्रेस का हरियाणा में चुनाव हारने का एक कारण यह भी था कि जिन नेताओं को पार्टी हाई कमान ने प्रत्याशी चयन की जिम्मेदारी दी थी उन्होंने अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई और गलत प्रत्याशियों का चयन किया। वहीं इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों के साथ गठबंधन नहीं किया जबकि राहुल गांधी ने अमेरिका जाने से पहले हरियाणा के नेताओं से कहा था कि वह आम आदमी पार्टी के साथ हर हाल में समझौता करें। अक्सर देखा गया है कि प्रत्याशियों के चयन के समय राहुल गांधी गंभीर नहीं रहते हैं, इसकी जिम्मेदारी उन नेताओं के हाथों में सौंप देते हैं जिन नेताओं के कारण कांग्रेस आज कमजोर दिखाई दे रही है। वह नेता राहुल गांधी को गंभीरता से नहीं लेते हैं और अपनी मनमर्जी के प्रत्याशियों की घोषणा कर देते हैं। इस कारण कांग्रेस चुनाव हार जाती है। मगर महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव को लेकर राहुल गांधी गंभीर नजर आ रहे हैं। उन्होंने प्रत्याशियों के चयन से लेकर सहयोगी दलों के साथ सीट शेयरिंग की जिम्मेदारी भी अपने हाथ में ले ली है।
राहुल गांधी को सीट शेयरिंग के मामले में अब बड़ा दिल दिखाने की जगह, बड़ा फैसला और कठोर निर्णय लेना होगा। आखिर कांग्रेस कब तक बड़ा दिल दिखा कर राज्यों में बर्बाद होती रहेगी। जब राहुल गांधी को अपने बब्बर शेरों पर भरोसा है तोे बड़ा दिल अपने बब्बर शेरों के प्रति दिखाना होगा, जो कांग्रेस के सहयोगी दलों के द्वारा सीटों को लेकर की जा रही बार्गेनिंग को लेकर खुश नहीं है बल्कि नाराज हैं और इंतजार कर रहे हैं राहुल गांधी के मजबूत निर्णय का। हरियाणा चुनाव में मिली हार के बाद मैंने अपने ब्लॉग में लिखा था कि राहुल गांधी को प्रत्याशियों का चयन अपनी मौजूदगी में करवाना होगा और प्रत्याशियों की लिस्ट भी राहुल गांधी की मौजूदगी में जारी हो। राहुल गांधी इसको लेकर गंभीर हुए और सोमवार 21 अक्टूबर को राहुल गांधी चुनाव समिति की बैठक में उपस्थित हुए और एक-एक प्रत्याशी पर गौर किया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं।)