
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
हमने तो देख लिया है यहाॅं ऐसा करके।
तुम भी पछताओगे दुनिया पे भरोसा करके।।
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ऐसी उरयानी* से छुप बैठिए पर्दा करके।
“टाॅंक दो आज की तस्वीर को उल्टा करके”।।
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गर्दिशे दहर* से घबरा के अभी सोया हूँ।
मत सताओ मुझे यूॅं ख्वाब में आ आ करके।।
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लोग तूफ़ान से साहिल* की तरफ़ आते हैं।
मैं हमेशा रहा साहिल से किनारा करके।।
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इन उजालों से फ़रेब* और कहाँ तक खाऊँ।
बैठ जाने दो मुझे घर में ॲंधेरा करके।।
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तुमको देखा तो चले आये यहाँ महफ़िल में।
तर्के उल्फ़त* न हुआ हमसे इरादा करके।।
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होगा “अनवर” कोई आवारा हवा का झोंका।
जो गया है मेरे जज़्बात* को ज़िन्दा करके।।
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उरयानी*नग्नता
गर्दिशे दहर*समय का चक्र बदनसीबी
साहिल*तट किनारा
फ़रेब*धोखा
तर्के उल्फ़त* प्रेम से विच्छेद
जज़्बात*दिल का जोश भाव
शकूर अनवर
9460851271