
-ए एच जैदी-

कोटा। कोचिंग सिटी के लिए चम्बल नदी किसी वरदान से कम नहीं है। चम्बल नदी अपने आसपास बसे लोगों की न केवल प्यास बुझाती है बल्कि इससे निकली वितरिकाएं हजारों एकड कषि भूमि को सरसब्ज भी करती हैं। इसके किनारे हजारों मील में मुकुंदरा के जंगल भी आबाद हैं। यह जैव विविधता में अहम भूमिका भी अदा कर रही है।
राजस्थान की इस प्रमुख नदी में तीन बांध बन जाने और नहर निकलने के बाद तो कोटा संभाग में खेती किसानी में क्रांति आ गई है। ऐसे ही वन्य जीवों और जलीय जीवों के लिये बहुत सुरक्षित स्थल है।

सरकार द्वारा कड़े नियम व वन्य जीवो की सुरक्षा के कारण अच्छे परिणाम सामने आ रहे है। जवाहर सागर क्षेत्र में ही भालू व पैंथर की बढ़ती संख्या वन्य जीव प्रेमियों के लिए ही नही बल्कि पर्यटकों के लिए भी शुभ संकेत है।
चम्बल बोट सफारी में आये दिन जंगली जानवरों की साइटिंग होती रहती है। बोटिंग करते समय विभाग के नियमों का पालन करें और बोट संचालक के बताए समय पर जाएंगे तो 90 प्रतिशत भालू व पैंथर दिखाई देने के चांस होते है।
ऐसे ही राजस्थान में सिर्फ चम्बल में दिखने वाले ऑर्टर उदबिलाओ भी बोट से देखा जा सकता है। मगरमच्छ यहां अछी संख्या में है। चम्बल में पर्यटन का मज़ा ही अलग है। एक व्यक्ति एक घंटा एक हज़ार रुपये एक पर्यटक को 2 घण्टे तो लगते ही है। बोट पर घूमने के लिए कम से कम 4 व्यक्ति होने चाहिए। वैसे अब चम्बल की घड़ियाल सेंचुरी सिर्फ नाम की रह गई है।

राणाप्रताप सागर से कोटा बैराज तक घडियालों का नमो निशान दिखाई नहीं देता। कोटा जिले के इटावा के पास चम्बल नदी में पिछले कुछ सालों से इनका प्रजनन हो रहा है। वहां पर भी कई बार बाढ़ आने से घडियाल बह जाते हैं।
चम्बल रेस्ट हाउस में एक पोंड इसी लिए बनवाया था कि मगर या घड़ियाल के बच्चों को पाला जा सके। वो कभी काम में नही आया। जबकि यहां इनका प्रजनन संभव है। चम्बल में पर्यटन को बढावा देने के बहुत अवसर हैं क्योंकि जिस तरह की जैव विविधता इस क्षेत्र में देखने को मिलती है वैसी आम तौर पर नदी किनारों पर नहीं है।

(लेखक नेचर प्रमोटर तथा ख्यातनाम फोटोग्राफर हैं)
चम्बल नदी कोटा की शान है।साथ ही जन जन की प्यास बुझाने के कारण वरदान है।