
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

इस पर कितना शोर मचा है।
दिल में बस इक चोर घुसा है।।
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इसने ही महफूज़* रखा है।
ये तो माॅं का दस्ते दुआ है।।
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जो भी लहरें चीर के निकला।
वो दरिया के पार उतरा है।।
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कमरे में सोया हूॅं तन्हा।
सब खूॅंटी पर टॅंका हुआ है।।
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इश्क़ में कितने पापड़ बेले।
तब जाकर ये दर्द मिला है।।
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सूख गये यादों के जंगल।
एक तेरा ग़म फिर भी हरा है।।
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अक़्ल ने देखे खेल तमाशे।
इश्क़ आग में कूद पड़ा है।।
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इश्क़ की अज़मत* दुनिया के ग़म।
अपने क़लम ने यही लिखा है।।
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अब तो तुम भी उठ्ठो “अनवर”।
सारा ज़माना जाग रहा है।।
महफ़ूज़* सुरक्षित,
अज़मत*बढ़ाई, शान,
शकूर अनवर
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