
-चाँद ‘शैरी’-

ऐ-शागे-ग़म ! मुझ को सदा दे रहा है कौन
भड़की है ग़म की आग हवा दे रहा है कौन
सुनता नहीं पुकार कोई दर्द की यहाँ
यह अपने आँसुओं से दुआ दे रहा है कौन
पल-पल में हादसा कोई गुज़रा यहाँ-वहाँ
जख़्मी हुए जो उन को दवा दे रहा है कौन
तूफ़ाँ को रोक पाए न बस्ती के पहरेदार
नफ़रत की आँधियों को हवा दे रहा है कौन
‘शेरी’ बना न आशियाँ अपना चमन से दूर
तन्हाइयों की तुझ को सज़ा दे रहा है कौन
चाँद ‘शैरी’ (कोटा)
098290-98530
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