
-आतिशी को मिलेगी दिल्ली की कमान
-द ओपिनियन-
आम आदमी पार्टी की वरिष्ठ नेता आतिशी दिल्ली की नई मुख्यमंत्री होंगी। अरविंद केजरीवाल ने जमानत पर रिहाई के बाद जब मुख्यमंत्री पद छोड़ने की घोषणा की तो जिन नेताओं के नाम उनके संभावित उत्तराधिकारी के रूप में उभरे उनमें आतिशी का नाम भी था। तब कयास यह लगाए जा रहे थे कि सीएम पद की दौड़ में केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल सबसे प्रबल दावेदार हैं और अन्य नेताओं के नाम उनके पीछे थे। संभावना इस बात की ही जताई जा रही थी कि सीएम केजरीवाल किसी महिला नेता को ही सीएम की कुर्सी सौंपना चाहते हैं। आतिशी के अलावा इस दौड़ में एक और महिला नेता रेखा बिडला का नाम भी शामिल था। राखी बिडला का नाम इसलिए चर्चा में था कि केजरीवाल हाल में दलित समुदय के दो नेताओं के पार्टी छोड़ कर जाने से इस बड़े वोट बैंक को सकारात्मक संदेश देने के लिए राखी बिडला को मौका दे सकते हैं। हालांकि इस दौड़ में सौरभ भारद्वाज और कैलाश गहलोत जैसे नेताओं के नाम भी थे, लेकिन बाजी अंततः आतिशी के हाथ लगी। आतिशी को सीएम बनाने का फैसला मंगलवार सुबह आम आदमी पार्टी विधायक दल की बैठक में हुआ। सीएम केजरीवाल ने आतिशी को उनके स्थान पर अगला मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा जिसे पार्टी विधायकों ने सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया। लेकिन आतिशी के लिए जिम्मेदारी अग्निपरीक्षा के समान होगी। दिल्ली में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले है। इसलिए उनके सामने आम आदमी पार्टी को वापस सत्ता में लाने की अहम जिम्मेदारी होगी और इसमें उनको कांग्रेस व भाजपा की चुनौती का सामना करना पड़ेगा ।
क्योंकि अभी हरियाणा में कांग्रेस व आम आदमी पार्टी के बीच मिलकर चुनाव लड़ने के मुद्दे पर सहमति के बावजूद सीटों के बंटवारे पर बात अटक गई और अब दोनों पार्टियों आमने सामने हैं। दिल्ली विधानसभा चुनावों में दोनों के बीच सीटों के बंटवारे पर सहमति बनने के फिलहाल आसार कम हैं। ऐसे में अब आतिशी के सामने सीएम के रूप में सियासी आतिशी पारी खोलकर पार्टी को वापस सत्ता में लाने की अहम चुनौती रहेंगी। केजरीवाल ने पत्नी सुनीता केजरीवाल को संभवतया सीएम की कुर्सी से इसलिए दूर रखा कि उनके खिलाफ भी भाजपा परिवारवाद को हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं कर सके। वहीं, मनीष सिसोदिया व केजरीवाल के जेल में जाने के बाद आतिशी सबसे विश्वसनीय व ताकतवर मंत्री के रूप में उलरी और पार्टी की सियासी लड़ाई भी मबजूती से लड़ी । संभवतः इसलिए ही केजरीवाल ने उनको सीएम पद के लिए चुना। मनीष सिसोदिया के जेल जाने के बाद आतिशी ने बतौर शिक्षा मंत्री कामकाज संभाला। बेहतर शिक्षा को केजरीवाल अपने सियासी हथियार के रूप में इस्तेमाल करते रहे हैं। शिक्षा मंत्री के रूप में उनकी उपलब्धि भी इस प्रगति में सहायक बनी है। हालांकि राजनीति में यह भी होता है कि कुर्सी मिलने के बाद इंसान के तेवर बदल जाते हैं। जब वापस कुर्सी खाली करने का अवसर आता है तो फिर सहजता नहीं रहती। दूरियां बढ़ जाती हैं। झारखंड में हाल में हेमंत सोरेन ने वापस सीएम पद संभाला तो चंपई सोरेन नाराज हो गए और पार्टी छोड़कर भाजपा में चले गए। अब इसमें गलती किस की रही यह तो हेमंत सोरेन व चंपई सोरेन से बेहतर और कोई नहीं जानता लेकिन कुर्सी दीवार पैदा कर देती है। केजरीवाल ने आतिशी का नाम तय करते हुए बहुत से पहलुओं पर गौर किया होगा कि सत्ता की कमान अप्रत्यक्ष रूप से उनके पास ही रहे। आतिशी के रूप में उन्होंने भाजपा के सियासी हमलों की धार भोंथरी करने का प्रतिरक्षा तंत्र कायम किया है। देखना है कि अब केजरीवाल और आतिशी अगले साल होने वाले विधानसभा में क्या कोई नया इतिहास रच पाते हैं या नहीं।

















