
-शैलेश पाण्डेय-
पत्रकार जगत में प्रतिस्पर्धा और प्रतिद्वंद्वी की सफलता से मन ही मन जलन सामान्य बात है। यदि आप प्रतिद्वंद्वी अखबारों में काम करते हैं तो फिर यह प्रतिस्पर्धा और जलन कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है। लेकिन ऐसे में भी यदि कोई पत्रकार अपने प्रतिद्वंद्वी से स्पर्धा से ज्यादा प्रेम करता हो तो वह सुबोध जैन ही हो सकता है। हालांकि सुबोध जैन मेरे से उम्र में छोटे हैं लेकिन मुझे उनका भरपूर प्यार मिला तो बात बेबात झिडकियां भी सुनने को मिलीं। लेकिन वह ऐसे शख्स हैं जो हमेशा फिकर भी रखते हैं। यही कारण है कि उन्हें सभी के सामने सुबोध जी भाई साब ही कहता हूं।
हमारी मुलाकात का सिलसिला राजस्थान पत्रिका के कोटा से प्रकाशन के कुछ समय बाद शुरू हुआ। वह दैनिक नवज्योति की उस समय की सबसे प्रतिभाशाली पत्रकारों की टीम में अपनी जगह बनाने के प्रयास में थे और हम राजस्थान पत्रिका की पाठकों में पैठ बनाने में। पहले से स्थापित दैनिक नवज्योति और राजस्थान पत्रिका की समर्पित टीम में कम्पटीशन जोरदार था। तब मैं खेल पत्रकार का दायित्व निभा रहा था। कुछ समय बाद सुबोध जैन ने नवज्योति में खेल पत्रकार के तौर पर श्याम दुबे का स्थान लिया। यहीं से हमारा साथ शुरू हुआ। कुछ ही समय में हम मित्र बन गए। लेकिन खबरों के मामले में न तो वह कुछ बताते और न मैं। यह भी था कि कभी यह चर्चा नहीं करते थे कि तुमने यह प्रकाशित किया और मैंने यह। सुबोध जी हॉकी के शानदार खिलाड़ी रहे इसलिए उनकी इस खेल में जानकारी अच्छी थी। यह उनका बड़प्पन था कि श्रीराम हॉकी के दौरान मुझे हॉकी खेल की बारीकी से अवगत कराने में पीछे नहीं रहते थे। जब अन्य खेलों में हमारा मौका आता तो हम भी ज्ञान बांट देते। वह जितने अच्छे हॉकी के खिलाड़ी थे उतने ही कमजोर क्रिकेट के। लेकिन क्रिकेट मैदान उनका उत्साह देखने लायक था। उनका खेल मैदान पर 60 साल की आयु के बाद भी जज्बा देखने लायक है। हमने पत्रकारों की टीम से दर्जनों मैच खेले और मजे किए। करीब एक दशक की अवधि में सुबोध जी खेल की बजाय अन्य बीट पर काम करते हुए कोटा शहर के नामी पत्रकार बन गए। आए दिन उनके नाम से सनसनीखेज खबरें प्रकाशित होती। इसके बावजूद उनका बड़प्पन नहीं गया। जब भी मिलते मेरे नाम से ही संबोधित करते। पत्रकारिता जगत में के बी एस हाडा, विनय मेहता के अलावा वह एक मात्र शख्स थे जो मुझे तू तड़ाक से नाम लेकर बुला सकते थे। वह सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए और मैं जयपुर होता हुआ देश भर में घूम कर दो दशक से अधिक समय बाद रिटायर होकर गृह नगर कोटा लौटा। तब तक सुबोध जी स्वतंत्र पत्रकार बन चुके थे और उनके देश भर के अखबारों और पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित होने लगे थे। मैंने समझा कि अब तो सुबोध जी भाई साब बड़े आदमी बन चुके हैं हमें कैसे पहचानेंगे। लेकिन जैसे ही उन्हें मेरे एक स्थानीय अखबार से जुड़ने की सूचना मिली तो मिलने का आदेश दिया। इसके बाद से उनका स्नेह लगातार मिल रहा है। समय समय पर फोन कर हाल चाल जानना और कोई समस्या हो तो समाधान करना उनकी फितरत में है। उन्हें मेरे किसी भी काम की जानकारी मिल जाए तुरंत फोन कर कहेंगे मेरे पास आ जाओ काम हो जाएगा। आज सुबोध जी का जन्म दिन है। ईश्वर उन्हें लंबी उम्र के साथ हमारे जैसों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरते रहने का जज्बा प्रदान करे।