बिना किसी बहाने के मनुष्यता की दिशा में बढ़े कदम ही बड़े होते हैं

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– विवेक कुमार मिश्र

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डॉ. विवेक कुमार मिश्र

किसी के लिए कुछ भी करना, किसी के साथ दो कदम चल देना , बिना यह सोचे कि इस चलने में क्या है, क्यों कदम बढ़ाएं की जगह बिना देर किए यदि आप कदम बढ़ा देते हैं तो यह मनुष्य होने की उपस्थिति होती है। मनुष्यता के लिए जो कदम बढ़ते हैं वे किसी सुविधा के कारण नहीं बढ़ते बल्कि सुविधाओं के ढ़ेर पर न होते हुए भी वे केवल अपने कर्तव्य और स्वभाव के कारण उस कार्य को संपन्न करते हैं जो उनके आस-पास, उनके अधिकार की सीमा में होता है। मदद करना एक तरह से स्वभाव की बात होती है। जिसका स्वभाव मददगार के रूप में होता है वह हर समय हर स्थिति में मदद के लिए कदम बढ़ा देते हैं। ऐसे लोग सुविधा और असुविधा के संसार से उपर उठ चुके होते हैं। ऐसे लोग बस कदम बढ़ाना जानते हैं। उन्हें तो बस कदम बढ़ाना होता है, उनकी नजर परिणाम या लाभ पर न होकर केवल अपने कार्य पर होती है। वह जो कुछ कर रहा होता है वह मनुष्य होने के नाते कर रहा होता है। मनुष्य पद को हमारे यहां सबसे ज्यादा महत्व दिया गया। आपकी उपस्थिति मात्र से यदि मानवीय गरिमा में बढ़ोतरी होती है तो आपको कदम बढ़ाना ही होगा । आप जब ऐसी स्थिति में होते हैं तो आपको कदम बढ़ाने के लिए ही कहा जा सकता है। आपके कदम यदि ऐसे समय में रुक गए तो आपके होने न होने का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता । इसीलिए हर हाल में चलने के लिए आगे आना पड़ता है। सुविधा और असुविधा की सब डोर उसके हाथ से ही होकर जाती है, बिना किसी उलझन में पड़े ही हमें आगे बढ़ने के लिए कदम बढ़ाना चाहिए। मनुष्य के बढ़े हुए कदम हर स्थिति में उसे बड़ा बनाते हैं। रुक जाना , अवरोध का शिकार हो जाना , सुविधाओं का कैदी हो जाना मनुष्य की गरिमा को क्षतिग्रस्त करता है। मनुष्य होने की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि वह चल पड़े, कदम बढ़ा दें, दुनिया की गति में अपने आप को सबसे पहले रखें। हर समय लाभ और सुविधा की नदी में तैरने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, बहुत सारे कार्य इस तरह के भी होते हैं जो शुद्ध रूप से मनुष्य के होते हैं और मनुष्य के रूप में जब इस तरह के कार्य आप करते हैं तो इसे कोई देखे न देखें कोई नोटिस करें न करें पर ईश्वर की नोटिस में आपका कार्य सबसे पहले आ जाता है। मनुष्यता से भरे हुए कदम ही दुनिया में सभ्यता और संस्कृति की कहानियां लिखते हैं। सभ्यता की बुनियाद इस बात पर टिकी होती है कि हमारे ही कार्य महत्वपूर्ण नहीं है इससे भी कहीं ज्यादा उनके कार्य महत्वपूर्ण हैं जो किन्हीं कारणों से अपने कार्य को कर नहीं पाते। यदि आप मनुष्य होने के कारण उनकी मदद करते हैं, उनके लिए एक कदम बढ़ाते हैं तो आप कुछ और करें या न करें यहीं आपकी सबसे बड़ी पूजा हो जाती है।
मनुष्य होने के लिए कभी भी किसी भी समय कदम बढ़ा देना चाहिए, मनुष्यता के लिए समय और मुहुर्त देखने की जरूरत नहीं होती, आप भाग्यशाली हैं कि अपको इस तरह की सेवा का अवसर मिला है। सेवा करने का अवसर भी बहुत मुश्किल से मिलता है। जब ईश्वर प्रसन्न होते हैं तो इस तरह का अवसर मिलता है कि आप किसी के लिए कुछ कर सकें, एक कदम किसी और के लिए चल सकें। अपने लिए तो हजारों कदम हर कोई चलता है पर औरों के लिए एक कदम भी बढ़ाना मुश्किल सा लगता है ऐसी स्थिति में यदि कभी किसी के लिए एक कदम चलने का यदि अवसर मिलता है तो बिना किसी बात के तुरंत दौड़ जाना चाहिए। सेवा का मन, सेवा का भाव हर किसी में नहीं होता और जिसमें सेवा का भाव होता है वह अपने आप को रोक नहीं पाता। वह तो चल ही देता है, उसे न थकान लगती है न ही कोई कार्य भारी लगता है, वह मन से हंसते हुए बहुत सारे कार्य कर लेता है जिसे कोई करना नहीं चाहता या करने से कतराता रहता है। ऐसे लोग स्वभाव से बड़े मन वाले होते हैं, लाभ नुकसान के फेर में पड़े बिना ही हर कार्य करते हैं। मनुष्य होने की दिशा में जो कदम बढ़ते हैं वे किसी लाभ के लिए नहीं बढ़ते वे कदम बस यूं ही मनुष्य होने की उपस्थिति भर होते हैं। संसार में असंख्य लोग इस तरह से हैं जो अपना भार ले चलने की जगह दूसरे का भार ढोने में खुशी महसूस करते हैं। उन्हें लगता है कि केवल यदि अपने लिए जी रहे हैं या केवल अपने लिए चल रहे हैं तो उसका कोई अर्थ नहीं होता, आपको औरों के लिए भी चलना चाहिए। यह प्रश्न नैतिक जिम्मेदारी का है। जब आपके भीतर नैतिक सवाल होते हैं जब आपके भीतर मूल्य से जुड़े प्रश्न होते हैं तो आप केवल अपने बारे में ही नहीं सोचते, फिर तो आपकी दुनिया औरों की खबर लेने कुछ उनके लिए करने से शुरू होती है। किसी और के लिए यदि शुभाशंसा में भी हाथ उठते हैं तो सीधी सी बात है कि आप मानवीय गरिमा को जी रहे हैं। मनुष्य होने की बात मनुष्य के आकार प्रकार से नहीं होती, हमें मनुष्यता के संकल्प को विस्तारित करने के लिए कदम बढ़ाना पड़ता है। बहुत सारे लोग केवल पड़े होते हैं, उनके पास समय की कोई कमी नहीं होती पर वे किसी और के लिए न तो समय खर्च करना चाहते न ही किसी तरह की पूंजी खर्च करना चाहते। उनकी पूंजी भी उनके निजी हितों से उपर नहीं उठ पाती और ऐसे में ही जीवन की बड़ी बड़ी बातें करते रहते हैं। जीवन बातें करने के लिए नहीं मिला है, जीवन का स्वरूप कुछ इस तरह से हो कि आप अपना कार्य तो करें ही पर यदि एक पल के लिए भी किसी और के लिए कुछ करने का मौका आता है तो उस समय ज्यादा सोचें नहीं बल्कि जो कार्य है उसे अपनी क्षमता भर कर लीजिए। दुनिया को दुरुस्त करने में आदमी की इस तरह की उपस्थिति महत्वपूर्ण हो जाती है कि बिना किसी परवाह के वह संकट के समय खड़ा है । बहुत बार तात्कालिक ढ़ंग से जब सोचते हैं तो यह साफ दिखता है जो संकट में, विशेष परिस्थितियों में यदि आपके साथ कदम बढ़ा कर चल रहा है तो वह बहुत बड़ा आदमी है। किसी आदमी के बड़े होने की दिशा उसके पद व प्रतिष्ठा से नहीं जुड़ी होती बल्कि उसके कार्य से वह बड़ा होता है। सभ्यता और संस्कृति के संदर्भ में मनुष्यता की ओर बढ़े कदम ही दुनिया में मूल्य संसार की रचना करते हैं। एक मूल्य यूं ही नहीं बन जाता बल्कि किसी संदर्भ में जब कोई बात मूल्य के रूप में आती है तो उसके पीछे मानव हित और अन्य के हित में हमारी उपस्थिति का ही प्रमाण होती है। जब हम किसी के लिए कुछ कर सकने की स्थिति में होते हैं तो सीधी सी बात है कि हमें वह कार्य जरूर करना चाहिए।
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