दक्षिण से निकला सबक बाकी सबके भी काम का

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-सुनील कुमार Sunil Kumar

दक्षिण भारत से एक अच्छी खबर है, जो कि गिनती में बहुत कम आती हैं, कि अमरीकी कंपनी एप्पल आईफोन बनाने के अपने भारतीय कारखानों में काम करने वाली महिलाओं के लिए बड़ी संख्या में हॉस्टल और रिहायशी सहूलियत बनाने जा रही है। एप्पल के लिए फोन बनाने वाली दूसरी कंपनियों के साथ मिलकर उसने यह योजना बनाई है, और आज इसी बारे में बिजनेस स्टैंडर्ड में छपे एक समाचार से यह भी पता लगता है कि चीन और वियतनाम में महिलाओं को रिहायशी सहूलियत देने के बड़े अच्छे नतीजे निकले हैं, सुविधा और सुरक्षा की वजह से उनकी दक्षता और उत्पादकता भी बढ़ी है। अभी जो जानकारी सामने आई है उसके मुताबिक इस वित्तीय वर्ष में कंपनी दो लाख से अधिक कामगार बढ़ाने वाली है जिनमें से 70 फीसदी महिलाएं हो सकती हैं। और अभी ही तमिलनाडु और कर्नाटक में आईफोन बनाने वाले कारखानों में दसियों हजार कामगार हैं, जिनमें बड़ा अनुपात महिलाओं का है। इनमें से एक कंपनी के 41 हजार कामगारों में से 35 हजार महिलाएं हैं।

यह भारत के लिए एक बड़ी कामयाबी की बात है कि महिलाओं को इतनी बड़ी संख्या में सुरक्षित और ठीकठाक मेहनताने वाला काम मिल रहा है। और दुनिया में टेक्नॉलॉजी से जुड़ी चीजें बनना जारी रहेगा, एप्पल जैसी एक सबसे कामयाब कंपनी ने भारत को अपना एक मैन्युफेक्चरिंग ठिकाना बना लिया है, तो यहां उसका विस्तार भी होते चलेगा। इससे भारत को टैक्स के रास्ते भी बड़ी कमाई होगी, और भारतीय कामगारों को लाखों की संख्या में अच्छा रोजगार मिल रहा है, और इससे भी बड़ी बात यह कि रोजगारों का सबसे बड़ा अनुपात महिलाओं को जा रहा है। देश में गुजरात में तो पिछले दस बरस में बड़ी संख्या में उद्योग गए हैं, और यह समझ पड़ता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अपने गृहराज्य के प्रति लगाव उन्हें अमरीका से लेकर चीन तक के राष्ट्रपतियों को गुजरात ले जाने के बहाने देता है। लेकिन दक्षिण भारत के राज्यों में ऑटोमोबाइल कंपनियों से लेकर एप्पल तक का वहां जो दाखिला हो रहा है, उससे हिन्दुस्तान के बाकी राज्यों को भी यह सीखने की जरूरत है कि वहां सरकारों के बर्ताव से परे कामगारों की तकनीकी दक्षता की वजह से ये कंपनियां वहां जा रही हैं। अंग्रेजी भाषा के मामूली ज्ञान के साथ-साथ तकनीकी क्षमता से लैस कामगार एप्पल जैसी कंपनी के लिए जरूरी हैं, और शायद इसीलिए इस कंपनी ने दक्षिण के दो राज्यों को पसंद किया है। हमारे नियमित पाठकों को याद होगा कि हम बार-बार अपने अखबार के इसी कॉलम में तमाम राज्यों के लिए लिखते हैं कि उन्हें अपनी जनता को मजदूरी से अधिक के लिए भी तैयार करना चाहिए। तमिलनाडु और कर्नाटक में जिस तरह लाखों कामगारों को इस एक कंपनी के एक प्रोडक्ट के लिए अच्छा काम मिला है, उससे भी देश के बाकी राज्यों को सबक लेना चाहिए।

अब हम इस खबर के एक दूसरे पहलू पर आना चाहते हैं। भारत में कामगारों में महिलाओं का अनुपात अभी 37 फीसदी था, जो कि एक बरस में अब 41 फीसदी तक पहुंचा है। भारत सरकार के ये आंकड़े यह भी साबित करते हैं कि महिलाओं को मौके मिलें तो वे बराबरी से काम कर सकती हैं। हम इसी वक्त के चीन के आंकड़े अगर देखें तो वे 60 फीसदी से अधिक हैं। यानी भारत के मुकाबले चीन में महिलाओं की भागीदारी डेढ़ गुना है। और इससे जाहिर है कि दुनिया भर की कंपनियों के मैन्युफेक्चरिंग ठिकाने के लिए चीन को पहली पसंद क्यों माना जाता है, और इससे ही यह भी जाहिर होता है कि चीन को अधिक आबादी की जरूरत क्यों पड़ रही है। हिन्दुस्तान के शहरों में महिलाओं के रहने की कोई सुरक्षित और संगठित जगह नहीं रहती है। कई शहरों में सरकार ने इसके लिए पहल की है लेकिन कल्पनाशीलता की कमी से कामकाजी महिलाओं के हॉस्टल शहरों के बाहर बना दिए गए हैं। इसलिए दक्षिण भारत में एप्पल के इस प्रयोग से सीखने की जरूरत है जिसमें कि वह चीन और वियतनाम में पहले ही कामयाब हो चुका है। इस देश में महिलाओं के काम के अवसर बढ़ाने के साथ-साथ उनके सुरक्षित और सुविधाजनक रहने के इंतजाम भी करने चाहिए, तभी देश में उनकी उत्पादकता का पूरा फायदा मिल सकेगा।

हम दक्षिण भारत के एक राज्य आन्ध्र के मुख्यमंत्री के एक ताजा बयान को दोहराना चाहते हैं। चन्द्रबाबू नायडू ने यह कहा है कि लोग अधिक बच्चे पैदा करें क्योंकि वहां के लोग काम करने बाहर चले जा रहे हैं, और आबादी बुजुर्ग होती जा रही है। जब आबादी को भाषा और हुनर दोनों से लैस किया जाता है, और उन्हें देसी-विदेशी कंपनियों के साथ, और माहौल में काम करने लायक तैयार किया जाता है, तभी किसी राज्य के कामगार शानदार कामकाज के लिए बाहर जाते हैं। आज अमरीका में कदम-कदम पर दक्षिण भारतीय लोग काम करते दिखते हैं। भारत के कई राज्यों को इन तमाम चीजों से सबक लेने की जरूरत है, और हर राज्य को यह सोचना चाहिए कि दुनिया भर की कंपनियां किन पैमानों पर किसी राज्य को अपने कारखाने के लिए छांटती हैं। छत्तीसगढ़, झारखंड, और ओडिशा जैसे राज्यों का अधिकतर औद्योगीकरण इन राज्यों के खनिजों की वजह से है, किसी और वजह से नहीं। इन राज्यों को खनिज-आधारित उद्योगों से संतुष्ट होकर नहीं बैठ जाना चाहिए क्योंकि उनमें प्रदूषण बहुत अधिक होता है, और लोगों को मजदूरी किस्म का काम ही अधिक मिलता है। अगले कुछ बरस में कर्नाटक और तमिलनाडु में एप्पल के प्रोडक्ट बनाने में ही पांच-दस लाख कामगार लगेंगे, और ये सब लोग खनिज-आधारित कारखानों के कामगारों से कई गुना अधिक कमाई वाले रहेंगे।

भारत अपने आपमें एक यूरोपीय महासंघ सरीखा है और जिस तरह योरप के देश आपस में मुकाबला करते हैं, उसी तरह भारत के राज्य भी पूंजीनिवेश पाने के लिए, बुनियादी ढांचे के लिए एक-दूसरे से मुकाबला करते हैं। हर राज्य सरकार के पास यह सहूलियत रहती है कि वह देश में मौजूद बहुत सी सलाहकार कंपनियों से रिपोर्ट बनवा सके कि अधिक कामयाब राज्यों में क्या खूबियां हैं, और उनके राज्य में क्या खामियां हैं। महज अपने राज्य के भीतर थोड़ी-बहुत रोजगार खड़े करने की कोशिश किसी भी तरह से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आने का मुकाबला नहीं कर सकती। हर राज्य को चौकन्ना होकर अपने से अधिक कामयाब से लगातार सीखना चाहिए। हर राज्य को अपने तमाम शहरों में कामकाजी महिलाओं के लिए हॉस्टल तेजी से बनाने चाहिए जो कि कर्मचारियों के साथ-साथ क्षमता रहने पर छात्राओं के भी काम आ सकें।

(देवेन्द्र सुरजन की फेसबुक वॉल से साभार)

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