अनरंगे गणेश, छोटे गणेश, मिट्टी के गणेश… संकल्प बस इतना ही!!

ganesh

फिर आ रही है अनन्त चतुर्दशी…
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महज मिट्टी के माधो ही तो मत बनो…!

-पुरुषोत्तम पंचोली

purushottam pancholi (2)
पुरुषोत्तम पंचोली

हर साल अनन्त चतुर्दशी पर हजारों की संख्या में प्रथम पूज्य गणेश जी की मूर्तियों को शहर भर के जलाशयों में विसर्जित किया जाता है.अधिकतर ये मूर्तियां पीओपी की तो होती ही है, इन पर घातक पेंट चढ़ा होता है. इन सब का विसर्जन जब पवित्र चंबल नदी, या शहर की शान – किशोरसागर अथवा अन्य जलाशयों में किया जाता है तो केवल जल प्रदूषण ही नहीं होता, जलीय जंतुओं की जान के लाले भी पड़ जाते हैं. इतना ही नहीं इस विसर्जन के बाद बने इस जहरीले रासायनिक युक्त और घोर घातक जल को पीने या ऐसे पानी में स्नान करने से लोग खतरनाक बीमरियों से ग्रस्त होने लगते हैं. पीओपी की मूर्तियों से गैर मामूली नुकसानो की लम्बी सूची है. संक्षेप में हम सब इसकी बुराइयों से वाकिफ हैं.
” हम लोग ” संस्था सहित अनेक समाज हितेषी, लोगों को इस कारगुजारी से बाज आने के लिए बारम्बार यह आव्हान करते रहें हैं कि हमे हमारे आराध्य गणेश जी की छोटी मूर्तीयों की स्थापना करनी चाहिए, मिट्टी से बनी मूर्तियों को ही घर लाना चाहिए और हम सब को अनिवार्य तौर पर बिना रंगी या अन रंगी मूर्तियों का ही उपयोग करना चाहिए.
आम जन के अलावा इस तरह का आग्रह जिला प्रशासन भी हर साल करता है, इस साल भी किया गया… लेकिन हाय रे दुर्भाग्य! कि हमारा जिला प्रशासन हर बार महज मिट्टी का माधो ही साबित होता है… कोई कारगर जतन वह आज तक नहीं कर पाया. जिला प्रशासन की अपीले निखलिस हवाई सिद्ध हुई हैं और उनकी कोशिशों से न पीओपी
की मूर्तियों के बनने पर प्रतिबंध लगा न इन रंगी चंगी मूर्तियों के विसर्जन पर रूकावट लग पाई..
आखिर हर साल केवल अपील करने और लोगों को समझाने की झूठमूठ की ओपचरिकता से कब तक तसल्ली करता रहेगा हमारा प्रशासन?
समझाइश और जन जाग्रति बहुत अच्छी बात है पर किसी खासी समस्या से निपटने के लिए केवल इसी से काम नहीं चलता, कुछ नहीं, पर्याप्त सख्ती भी जहाँ जरूरी हो करना होता है. हमारे जिला अधिकारियों को क्या यह साधरण सी बात भी हमे ही बतानी होगी?
संयोग से इस बार हमारे जिला कलेक्टर “पीयूष” हैं. उनके नाम का अर्थ अमृत से होता है. क्या हम
” पीयूष ” से इतनी भी अपेक्षा न करें कि वह चंबल में जहर न घुलने दें… हमारी पूर्व पुलिस कप्तान भी
” अमृता ” थी, पर वह भी पिछले साल शहर के” अमृत जल ” को जहरीला होने से नहीं बचा पाई!
हमे उम्मीद है कि इस बार हमारी पुलिस अधीक्षक – प्रतिभापुत्री और ओज व तेज की प्रति मूर्ती – ” तैजस्विनी ” अपने प्रभावी क्रिया कलापों से शहर को राहत दें सकेंगी… आमीन!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेखक के निजी विचार हैं)

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