-मनु वाशिष्ठ-

उड़द की दाल खाने में भारी होती है, सभी जानते हैं इसलिए, पुराने समय से ही इसे पाचक और स्वादिष्ट बनाने के लिए प्रायः गरम मसाले, देसी घी, हींग जीरे के छौंक का प्रयोग किया जाता था साथ ही एक और चीज का प्रयोग किया जाता था, सोने की गिन्नी! हमारे दादाजी भी इस बारे में बताते थे। खासतौर पर, जब कड़ाके की सर्दी पड़ती थी तब यह #विशेष उड़द की दाल बनवाते थे, जिसे बाजरे की रोटी और गुड़ के मलीदा ( चूरमा ) के साथ खाया जाता था। मैं उत्तर प्रदेश में #जमींदार #मुकदम परिवार से संबंध रखती हूं, और वहां हमारे में भी पुराने समय में यदा कदा ( शायद वे परिवार जो थोड़े बहुत पैसों की दृष्टि से अच्छे होते होंगे ) पुरानी परंपरा अनुसार उड़द दाल को स्वादिष्ट व पाचक बनाने के लिए गरम मसाले, और देसी घी के साथ-साथ सोने की गिन्नी का भी छौंक लगाया जाता था। गिन्नी के छौंक की बात मुझे इसलिए याद आई, क्योंकि एक बार गुरू जी के पास जाना हुआ, तो #गुरूजी ने भी शुद्ध चांदी और सोने के सिक्के के बारे में जानकारी दी, कि बच्चों को इसके सेवन से बौद्धिक क्षमता का विकास होता है। दोनों ही धातुओं का प्रयोग स्वास्थ्य वर्धक है। चांदी की तासीर ठंडी एवं सोने की तासीर गर्म होती है। शुद्ध चांदी के सिक्के तो मैं भी मटके (गर्मियों में) में हमेशा डाल कर प्रयोग करती हूं। चांदी के गिलास में पानी पीने से पित्त शांत होता है। आयुर्वेद में भी इन धातुओं के सेवन का वर्णन है। राजा महाराजाओं के रसोइए भी गिन्नी के छौंक का प्रयोग कई प्रकार से किया करते थे। इसे सीधे ही दाल में थोड़ी देर के लिए डाल कर भी पका सकते हैं और बाद में निकाल लें। लेकिन गर्म कर के छौंक लगाने का तरीका ही चलन में था। एक बात का और ध्यान रखें, चांदी या सोना हमेशा शुद्ध ही प्रयोग करें, तभी फायदेमंद है। पुराने समय में सभी खाद्य पदार्थ “आहार ही औषधि” की भांति प्रयोग किया जाता थे।
हां! तो बात हो रही थी सोने की गिन्नी के छौंक की, जानते हैं किस तरह इसका प्रयोग किया जाता है। रानी विक्टोरिया की या जो भी आपके पास हो, सोने की इस गिन्नी को चिमटे से अच्छी तरह पकड़कर चूल्हे की आग में गर्म किया जाता। (अगर चूल्हा नहीं है, तो इसे दाल में उबाल कर भी प्रयोग कर सकते हैं, पोषक तत्व तो आ ही जाएंगे ) फिर गर्म होकर लाल होने के बाद, गिन्नी को दाल के बर्तन में डाल दिया जाता। जैसे ही शुद्ध घी, हींग जीरे, गर्म मसाले और गिन्नी दाल के बर्तन में डाली जाती, छन्न की आवाज और धुंए की महक से सारी रसोई महक उठती। फिर चम्मच से बर्तन में दाल को उलट-पुलट कर भली-भांति मिलाया जाता, इस तरह बनाई गई दाल #स्वादिष्ट तो होती ही थी, #सुपाच्य एवं बलवर्धक भी होती थी। एक बात विशेष इस तरह की दाल कड़ाके की सर्दी (चिल्ला जाड़े) वाले दिनों में ही बनाई जाती है। अब तो सर्दी शुरू हो चुकी है, थोड़ी और पड़ने दीजिए और इस बार आप भी सोने की गिन्नी के छौंक की दाल का #शहंशाही आनंद लीजिए। देर किस बात की।
_मनु वाशिष्ठ कोटा जंक्शन राजस्थान
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