“पतंग का आतंक: अराजकता एवं त्रासदीपूर्ण संवेदनाओं का चारकोल चित्रण”

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-डॉ. रमेश चंद मीणा-

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डॉ. रमेश चंद मीणा

जवाहर कला केंद्र, जयपुर की सुकृति कला दीर्घा में हाल ही में, 4 अक्टूबर से 7 अक्टूबर 2024 तक ‘सृष्टि कला समूह’ (SAG) के कलाकारों की ‘वार्षिक कला प्रदर्शनी-2024’ आयोजित हुई। प्रस्तुत कला प्रदर्शनी का उद्घाटन माननीय उप-मुख्यमंत्री (राजस्थान सरकार) श्रीमती दिया कुमारी जी के करकमलों द्वारा किया गया। प्रस्तुत प्रदर्शनी में समूह के 18 कलाकार व 03 अतिथि कलाकारों ने भाग लिया, जिसमें 43 चित्र कृतियां व 05 मूर्तिशिल्प प्रदर्शित किये गये । प्रस्तुत कला प्रदर्शनी में समूह के मीडिया प्रभारी; चित्रकार- जगदीश प्रसाद मीणा की “पतंग का आतंक” चित्र श्रृंखला की 02 कृतियां प्रदर्शित हुई। उक्त कृतियों ने सहृदय कला रसिकों का ध्यान बखूबी अपनी और आकर्षित किया।

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जगदीश प्रसाद मीणा

“पतंग का आतंक” विषयक प्रस्तुत स्वेत-श्याम निवर्ण चित्रकृतियाँ प्रभावशाली अर्द्ध- अमूर्त शैली में भूरे कागज पर चारकोल (Charcoal on brown paper) माध्यम में 23”×33” इंच आकार के अंतराल(Space) पर सृजित है। कलाकार द्वारा चारकोल का माध्यम रूप में उपयोग; चित्र में गहरी और तीव्र भावनात्मक अनुभूति को साधता है। चारकोल की धुंधली रेखाएँ और काले-धूसर रंग के धब्बे चित्र में अराजकता, अशांति, और त्रासदी के प्रतीक बन जाते हैं। यह वर्ण-शून्यता विषय के दर्द और असहजता को गहराई से अभिव्यक्त करती है। चारकोल के मोटे और अनियमित स्ट्रोक इन चित्रों में अनिश्चितता, नाटकीयता और त्रासदी को और उभारते हैं, मानो पतंग का धागा अचानक से जीवन के धागे को काट रहा हो।चारकोल माध्यम से गहराई व पोत को(Texture) प्रस्तुत किया है, जो विषयवस्तु को और भी स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करता है। यहां,स्वेत-श्याम के बीच का संघर्ष भी जीवन की जटिलताओं का प्रतीक है, जहाँ खुशी और दुःख एक धरातल पर ही उपस्थित होते हैं।

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प्रस्तुत चित्रों की संरचना गतिशील और संतुलित है ।साकार से निराकार व निराकार से साकार के कहीं बीच का दृश्य विधान बुनती है,प्रस्तुत चित्र कृतियाँ।अपने अनुपम प्रतीक विधान, रचनाधर्मिता और अर्द्ध- अमूर्त शैली में गढ़े ये चित्र मानवीय संवेदनाओं को जागृत करते है, जो इन्हें न केवल एक जीवंत कलाकृति बल्कि एक सामाजिक टिप्पणी के सौंदर्यशास्त्रीय हस्ताक्षर के रूप में स्थापित करता है।कर्ता ने संवेदनाओं का उजास सिरजा है। चित्रों की सृजन शैली में, हरेक आकृति, तान और पोत स्वयं में प्रतीक बन गए है। यह अमूर्तन दृष्टा को विचार और संवाद के लिए प्रेरित करती है,उसकी सहृदयता को मथता है। जो कलाकृतियों के प्रति उनके जुड़ाव को बढ़ाती है। इस शैली-विषय में चित्रित दृश्यों में एक अद्वितीय संवेदनशीलता है। आकृतियों की अस्पष्टता और छायाओं का गहरा प्रभाव चित्र को एक रहस्यमय और विचारशील आयाम प्रदान करता है।अर्द्ध -अमूर्तन में रंगों और आकृतियों का संयोजन दर्शकों के मन में गहरे भावनात्मक अनुभवों को जगाता है। चित्रों में समन्वित दृश्यता और अमूर्तन सहृदय को आकृतियों और रंगों के खेल में डूबने का सुअवसर देती है। यहाँ चित्रकृतियाँ केवल दृश्य भर नहीं है, बल्कि यह हमारी अंतर्दृष्टि को भी झकझोरती है।

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कलाकार द्वारा सामाजिक सारोकार से मुठभेड़ व समाधान का एक साथ जीवंत प्रयास है प्रस्तुत चित्रकृतियाँ? मानव का कटा हुआ शीर्ष,इन चित्रकृतियों में निहित सर्वाधिक ज़ोरदार प्रतीक है, जो हिंसा और दुर्घटना का स्पष्ट प्रतिनिधित्व करता है। यह चित्रों के भीतर विद्यमान त्रासदी और मृत्यु का प्रतीक है। यहाँ सिर का कटना जीवन के असमय और क्रूर अंत का संकेत है, जहाँ इंसान पतंग के धागों की तरह अनियंत्रित हो गया है।चीनी मांझा, एक और महत्वपूर्ण प्रतीक है। जो समाज के उन अनदेखे खतरों का प्रतिनिधित्व करता है जो पतंगबाजी जैसे खेल में भी जानलेवा बन सकते हैं। यह मांझा, जो पतंग के धागे के रूप में दिखाई देता है, दुर्घटनाओं और चोटों का कारण बनता है, जिसे चित्रकार ने मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। इन चित्रों में उड़ती पतंगे जीवन की आकांक्षाओं और स्वतंत्रता का प्रतीक है, लेकिन इसके उलझे हुए धागे जटिलताओं और अप्रत्याशित खतरों को इंगित करते हैं। सृष्टा ने इन कलाकृतियों के माध्यम से भावनाओं, प्रतीकों और सामाजिक मुद्दों का उजास उकेरते हुए दृष्टा का मार्गदर्शन किया है।
चित्रों में चित्रित चिन्तित मानव चेहरें, मुखाकृति से रत्ति भर बाहर निकले एक चश्म नेत्र (किंचित जैन शैली से), पृथक मानव शीर्ष-कंकाल,ऐंठे व अनपेक्षित उभरे अंग-प्रत्यंग इत्यादि जीवन की अप्रत्याशितता, दुर्घटनाओं,आतंक और हिंसा का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ते हैं। यह सामाजिक चिंता को अभिव्यक्त करने का प्रतीकात्मक तरीका है, जो एक व्यक्तिगत और सामूहिक भय को इंगित करता है। कलाकार का उद्देश्य है कि दर्शक इन तत्वों के माध्यम से आत्ममंथन करें और समाज में व्याप्त इन खतरों के प्रति सजग हों। सृष्टा;आकारों के विकृतिकरण में एक मौलिक सौंदर्यबोध दृष्टा को परोसता है।चित्रों में भय व शोक स्थायी भाव गूंथा है,जो भयानक व करुण रस की निष्पत्ति कराता है।
वस्तुतः कला समाज का दर्पण भी (Art for life shake) है। जगदीश प्रसाद मीणा की “पतंग का आतंक” विषयक चित्रकृतियाँ; एक गहन और विचारशील कलाकृति है, जो जीवन के आनंद और खतरों के बीच का संतुलन खोजने का प्रयास करती है। चित्रों का कथ्य-शिल्प सृष्टा के अंतस से निपजकर बगैर आरोह-अवरोह के दृष्टा के मन में उतरता है। इसका अमूर्त और प्रतीकात्मक दृष्टिकोण दर्शकों को व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर गहराई से सोचने के लिए प्रेरित करता है। चारकोल की सरलता के बावजूद चित्र में छिपी जटिलता और भावनात्मक तनाव इसे एक प्रभावशाली कृति बनाते हैं, जो लंबे समय तक दर्शकों के मन में गूंजता रहता है। स्पष्टत: प्रस्तुत चित्रकृतियाँ कला और सामाजिक चेतना का एक महत्वपूर्ण संगम प्रस्तुत करती है।साथ ही, “मानववाद” ध्वनित है। कलाकार में सृजनधर्मिता के नए आयाम स्थापना की कुव्वत दिख पड़ती है।
कला समीक्षक
डॉ. रमेश चंद मीणा
सहायक आचार्य-चित्रकला
राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा(राज.)
rmesh8672@gmail.com
09816083135

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