
कोटा। बाढ़ सुखाड़ विश्व जन आयोग के अध्यक्ष तथा स्टाक होम्स वाटर नोबेल पुरस्कार प्राप्त डॉ राजेंद्र सिंह ने कहा है कि नई शिक्षा नीति में भारतीय सनातन मूल्य के ज्ञान को आधुनिक पद्धति में समाहित करना एक अच्छी पहल है लेकिन ये चुनौती पूर्ण है। सनातन ज्ञान को मूल आधार मानने वाले शिक्षाविद् अब नहीं बचे जो सुधार कर सकें।
डॉ सिंह ने करियर पॉइंट गुरुकुल थेकडा में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि मैकाले की शिक्षा प्रणाली ने आईएएस, आईपीएस जैसे जी हजूरी करने वाले सरकारी नौकरियों की फौज तो तैयार कर दी है लेकिन उनमें प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता नहीं है। ऐसे लोग हमारी प्राकृतिक एवं विरासत को नहीं बचा सकते।

त्रुटि पूर्ण शिक्षा प्रणाली में आमजन में प्रसन्नता का अभाव है और ऐसे बिगड़ैल ही आत्महत्या की ओर अग्रसर होते हैं। हमारे शासन का सिस्टम इसमें कोई सुधार करने की गुंजाइश नहीं रखता। फिर भी नई शिक्षा पद्धति से हमें बड़ी उम्मीदें हैं। वाटर मैन ने बताया कि हमने महिलाओं को केंद्र में रखकर पर्यावरण संरक्षण के काम शुरू किया उनकी बदौलत आज करौली, धौलपुर, डांग क्षेत्र एवं सवाई माधोपुर थाना मासलपुर आदि में हजारों अपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को खेती एवं किसी में लगा दिया है और वह अपने जीवन से अब संतुष्ट हैं। यह किसी शिक्षा की बदौलत नहीं हुआ बल्कि अनुभव और सनातन ज्ञान के आधार पर हुआ। जैसलमेर में जहां सबसे कम वर्षा होती है वहां के लोगों ने ऊंटों के माध्यम से काबुल और कंधार तक अपना व्यवसाय किया केवल सनातन ज्ञान के आधार पर और गड़ीसर आज भी वर्षा जल संचयन प्रणाली का अनुपम उदाहरण है।
डॉक्टर सिंह ने कैरियर पॉइंट के निर्देशक शेलेंद्र माहेश्वरी, विशिष्ट अतिथि जयदेव सिंह,चंबल संसद के संयोजक बृजेश विजयवर्गीय एवं मुंबई की युवा संस्था आई आई एम यू एन (इंडिया इंटरनेशनल मूवमेंट टू यूनाइटेड नेशन) की समन्वयक ऐश्वर्या कुमार की उपस्थिति में परिसर में पौधा रोपण भी किया।

















