ग़ज़ब करते हो अपने हुस्न की तशहीर* करते हो। सताइश* के लिये तरजीह* देते हो नुमाइश* को।।

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फोटो साभार अखिलेश कुमार

ग़ज़ल

-शकूर अनवर
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शकूर अनवर
*
अजी हम खूब समझे हैं तुम्हारी इस नवाज़िश को।
ग़ज़ब अंजाम देते हो नवाज़िश* में भी साज़िश को।।
*
यक़ीनन अब तो इसमें जल जला कर राख होना है।
बिल आख़िर* तुमने भड़का दी है फिर इस दिल की आतिश* को।।
*
वही तो बत्ने-गेती से* यहाँ गंदुम* उगाता है।
वगरना* कौन सूखे खेत में लाता है बारिश को।।
*
ग़ज़ब करते हो अपने हुस्न की तशहीर* करते हो।
सताइश* के लिये तरजीह* देते हो नुमाइश* को।।
*
दुआएँ भी फ़लक से अब तो “अनवर” लौट आती हैं।
तुम अपने दिल के अंदर ही रखो अब दिल की ख़्वाहिश को।।
*

नवाज़िश*मेहरबानी
बिल आख़िर*आख़िरकार
आतिश*अग्नि,आग
बत्ने-गेती से*ज़मीन के पेट से
गंदुम*गेहूँ
वगरना*अन्यथा, वर्ना
तशहीर*प्रचार, प्रसार
सताइश*तारीफ़
तरजीह*प्राथमिकता
नुमाइश*प्रदर्शन

शकूर अनवर
9460851271
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