
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

किसी भी मोड़ से मुझको न अब सदा* देना।
तमाम नक़्श मुहब्बत के तुम मिटा देना।।
*
चलो तबाही पे मेरी उन्हें मलाल* तो है।
तसल्ली टूटे हुए दिल को और क्या देना।।
*
हमेशा कुफ्र* ने ईमान* को जिला* बख़्शी।
जहाँ भी बुत* मिले कोई तो सर झुका देना।।
*
वो जिससे टूट गिरेंगे ये नफ़रतों के पहाड़।
तू वो चिराग़ मुहब्बत का मत बुझा देना।।
*
किसी ने आज तलक कुछ नहीं दिया “अनवर”।
में चाहता हूंँ मुझे तुम भी बददुआ* देना।।
*
शब्दार्थ:-
सदा*आवाज़
नक़्श*चिन्ह निशान
मलाल*दुख
कुफ्र *अधर्मिता
ईमान*आस्था
जिला*चमक
बुत*मूर्ति मेहबूब
बददुआ*कोसना देना
शकूर अनवर
9460851271