आने वाली हर मुसीबत हर बला से बेख़बर। इक परिंदा उड़ रहा है फिर हवा से बेख़बर।।

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ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

शकूर अनवर

आने वाली हर मुसीबत हर बला से बेख़बर।
इक परिंदा उड़ रहा है फिर हवा से बेख़बर।।
*
छा गया है ज़हनो दिल पर इस क़दर उसका वजूद*।
हो न जाऊॅं मैं कहीं अपनी अना* से बेख़बर।।
*
वो सितम पेशा* तग़ाफ़ुल आशना* क्या आयेगा।
जो हमेशा ही रहा अहदे वफ़ा* से बेख़बर।।
*
इक ज़रा चूके थे हम सो हमको ये सहरा* मिला।
वक़्त ए रुख़सत क्यूॅं रहे बाॅंगे दरा* से बेख़बर।।
*
क्या समझते वो मेरे शेरों में पिन्हाॅं* दर्द को।
सब तेरी बस्ती में थे हर्फ़ ओ नवा* से बेख़बर।।
*
देखलो उस बे वफ़ा को तुम भी “अनवर” देखलो।
वो यहीं बैठा हुआ है किस अदा से बेख़बर।।

वजूद* अस्तित्व
अना*आत्म सम्मान
सितम पेशा* अन्याय करने वाला
तग़ाफ़ुल आशना* ध्यान नहीं रखने वाला
अहदे वफ़ा* प्रेम में किया हुआ वादा
सहरा* रेगिस्तान
बाॅंगे दरा*क़ाफ़िला चलने पर बजने वाली घंटी
पिन्हा* छुपा हुआ
हर्फ़ ओ नवा*अक्षर और आवाज़

शकूर अनवर
9460851271

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