
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
आप समझें तो समझते रहें जज़्बात* का ग़म।
मेरे अश्कों ने तो ज़ाहिर किया हालात का ग़म।।
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नाज़ उठाते* हैं तुम्हारा तो उठाने वाले ।
फ़िक्र किस बात की तुमको तुम्हें किस बात का ग़म।।
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न इसे फ़िक्रे-ज़माना* न इसे फ़िक्रे-मुआश*।
खाये जाता है मुहब्बत को मुलाक़ात का ग़म।।
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घर के छप्पर की वो हालत कि बताए न बने।
इक नया और मिला है हमें बरसात का ग़म।।
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मेरे चेहरे की उदासी का सबब मत पूछो।
है मेरे दिल में अभी ज़ीस्त की हाजात* का ग़म।।
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हमने देखा है यहाँ मुल्क भी तक़सीम* हुआ।
हमने झेला है यहाँ दिल पे फ़सादात* का ग़म।।
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शेर में आये रवानी* तो कहाँ से आये।
दिल में रहता हो जहाँ साकिनो-हरकात का ग़म।।
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है वही अपनी मुहब्बत की कहानी “अनवर”।
न हमें जीत की ख़्वाइश न हमें मात का ग़म।।
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जज़्बात*जोश दिल के भाव
नाज़ उठाना*नखरे बर्दाश्त करना
फ़िक्रे-ज़माना*दुनिया की परवाह
फ़िक्रे-मुआश*रोज़गार काम धंधे की परवाह
ज़ीस्त की हाजात*ज़िंदगी की आवश्यकताएं
तक़सीम*विभाजन
फ़सादात*दंगे फ़साद
रवानी*लय
साकिनो-हरकात*शब्दों की गति और गतिहीनता
शकूर अनवर
9460851271