इधर उधर भटक के हम उसी डगर से जा लगे। सुकूॅं* कहीं मिला न जब तो तेरे दर से जा लगे।।

shakoor anwar 129
शकूर अनवर

ग़ज़ल

शकूर अनवर

इधर उधर भटक के हम उसी डगर से जा लगे।
सुकूॅं* कहीं मिला न जब तो तेरे दर से जा लगे।।
*
मसर्रतों* के क़ाफ़िले अब और ही तरफ़ चले।
ज़माने भर के हादसे* हमारे घर से जा लगे।।
*
किसी की जान फिर गई किसी का ख़ून फिर हुआ।
किसी नज़र के तीर फिर किसी नज़र से जा लगे।।
*
ये उसकी क़ुदरतों का ही तो है कमाल सोचिए।
गुलों में खुशबुऍं बसीं ये फल शजर* से जा लगे।।
*
बस एक रोशनी ही थी कि जो कमाल कर गई।
सितारे आसमान पर बड़े हुनर से जा लगे।।
*
हवा भी उस तरफ़ न थी और हौसले भी पस्त थे।
सफ़ीने* फिर किनारे पर बता किधर से जा लगे।।
*
तू “अनवरे”- हज़ीं* की भी मेरे ख़ुदा पुकार सुन।
निदामतो* के संग* सब फिर उसके सर से जा लगे।।
*

सुकूँ*चैन
मसर्रतों*खुशियों
हादसे*दुर्घटनाएं
शजर*पेड़
सफ़ीने* नावों का बेड़ा
अनवरे-हज़ीं*दुखी अनवर
निदामतों*शर्मिंदगी
संग*पत्थर

शकूर अनवर
9460851271

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