कभी ना हारें,अपराजिता बन छाई हैं स्त्रियां!

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phot courtesy pixabay.com

-मनु वाशिष्ठ-

manu vashishth
मनु वशिष्ठ

प्रकृति में समाया परिवार
स्त्रियां! ????
रोप दी जाती हैं धान सी
उखाड़ दी जाती हैं,
खरपतवार सी
पीपल सी कहीं भी उग आती हैं।
स्त्रियां!????
जीवन दायी अमृता सी,
महके लंबे समय तक,
रजनीगंधा सी
????
रजनीगन्धा, लिली
जैसे यौवन ने ली अंगड़ाई है
सप्तपर्णी के फूल से
प्रेम माधुर्य की खुशबू आई है।
स्त्रियां!????
आंसुओं को पी,
बिखेरती खुशबू पारिजात सी
पुनर्नवा सी,
ईश्वर की वरदान बन आई है।
स्त्रियां!????
दिल दिमाग की शांति,
शंखपुष्पी, ब्राह्मी सी
तुलसी सी पावन
आंगन की शोभा बढ़ाई है।
स्त्रियां!????
सौम्यता मनभावन
चंपा,चमेली,मोगरा,मालती सी
भरदेती सुखसौभाग्य,अमलतास(स्वर्ण वृक्ष) सी
घर आंगन में मानो,परी उतर आई है।
(कवयित्री मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान)

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