कविता का सीधा संवाद अपने समकाल और समाज से होता है

vivek mishra
कविता का सीधा संवाद अपने समकाल और समाज से होता है। यहीं पर वह हृदय की भाषा से विचार प्रवाह की दुनिया में आता है और कविता की उस ताकत से जनता को परिचित कराता है जो आमतौर पर कविता की पहचान और प्रतिष्ठा का साक्ष्य होता है । कवि की भाषा और सत्य का साक्षात्कार सीधे – सीधे हमारी संवेदन शिराओं से जुड़ कर हमें हमारे संसार में ले जाता है । उस संसार से परिचय कराया है जिसमें होने के बावजूद हम सब अपरिचय के शिकार होते हैं । यह सच है और इस सच से कोई और नहीं कवि ही साक्षात्कार कराते चलता है।

-प्रो. विवेक कुमार मिश्र

vivek mishra 162x300
डॉ. विवेक कुमार मिश्र

कविता अपने समय से संवाद करते हुए मनुष्य के पक्ष में मानव मन की प्रहरी बन काम करती हैं। कविता में सभ्यता , प्रकृति , इतिहास और मानव मन का वह चेहरा आता है जो इस संसार में होने न होने की बीच संघर्ष करता है। किसी भी समय और हालात पर कविताएं लिखी गई हो वह सबसे पहले मनुष्यता की संस्कृति को संरक्षित करने का काम करती हैं। यह मनुष्यता की भूमि ही वह मूल भूमि है जहां से कविता जन्म लेती है। या यह कहें कि यही से सभ्यता में कविताएं अपना क्रियात्मक व्यापार शुरू करती हैं। मनुष्य मात्र के लिए संवेदन की जगह बनाना , मानवीय भावों को उच्चतम वृत्तियों तक पहुंचाना ही कविता का पहला काम होता है। किसी भी समाज में जो कविताएं आती हैं वह उस समाज के सामूहिक मन से लिखी करुणा की वह लिपि होती हैं जो एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य तक बहुत आसानी से संक्रमित हो जाती हैं । कवि की भाषा आम समाज के जन संवेदन से निकल कर आती है । वह सीधे सीधे जनता की आवाज होती है । वह न तो पठित भाषा होती न ही वह ज्ञानकोष में संकलित भाषा होती वल्कि आम जन के सामूहिक मन में जो भाषा ध्वनित होती वह कवि की भाषा होती और इसी भाषा से कवि वृहत्तर समाज तक पहुंचता है । जिस कवि के पास यह भाषा नहीं होती वह जन समाज तक अपनी पहुंच नहीं बना पाता फिर वह कितना ही किताबी भाषा का प्रयोग कर लें उसकी कविता वह काम नहीं कर पाती जो कविता को करनी चाहिए। कविता का सीधा संवाद अपने समकाल और समाज से होता है। यहीं पर वह हृदय की भाषा से विचार प्रवाह की दुनिया में आता है और कविता की उस ताकत से जनता को परिचित कराता है जो आमतौर पर कविता की पहचान और प्रतिष्ठा का साक्ष्य होता है । कवि की भाषा और सत्य का साक्षात्कार सीधे – सीधे हमारी संवेदन शिराओं से जुड़ कर हमें हमारे संसार में ले जाता है । उस संसार से परिचय कराया है जिसमें होने के बावजूद हम सब अपरिचय के शिकार होते हैं । यह सच है और इस सच से कोई और नहीं कवि ही साक्षात्कार कराते चलता है । यहां यह कहना सही है कि कवि के यहां मस्तिष्क की भाषा की जगह हृदय की भाषा का प्रयोग होता है पर यहीं यह भी साफ है कि उसके यहां विचार मस्तिष्क की उर्वरता के ही होते हैं । कवि कर्म कभी भी आसान नहीं रहा है। कविता के सामने अपने समय की चुनौती हमेशा से रही है और कविता इस दिशा में निरंतर एक विकल्प की दुनिया रचती रही है फिर यह उतना ही बड़ा सच है कि कविता पर अनावश्यक टिप्पणियां भी बड़ी मात्रा में आती रही हैं । जो कवि से लेकर कविता के पाठक और आलोचक से लेकर चलते फिरते हर आदमी की होती है । इसमें कविता का बाजार और इस बाज़ार को तय करने वाले लोगों का भी कम योगदान नहीं हैं । इस तरह की चर्चा से असली विषय से भटकाकर एक भ्रम की स्थिति रच दी जाती है । जिससे रचनात्मक संसार का सत्य और मूल्य सामने न आएं या आए भी तो उस रूप में न आवे जिस रूप में वह है । यहीं पर कविता के गंभीर पाठक और आलोचक का दायित्व तो बढ़ ही जाता है स्वयं कवि को भी अपने आलोचक रूप के साथ सामने आना पड़ता है । यह अकारण नहीं है कि कवि आलोचक का पद साहित्य में अपने ढ़ंग से महत्वपूर्ण बन पड़ा और हर दौर में रचनात्मकता के बीच से फूटी प्रश्नाकुलता में से कवि – आलोचक की बड़ी उपस्थिति भी सामने आती रही है। कवि आलोचक को अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का एक बड़ा कारण है जो इस प्रकार है –
1. अक्सर यह सुनने में आता है कि कविताओं की भीड़ आ गई है ।
2. जिसे देखो वही कविता लिखे जा रहा है ।
3. हर आदमी कवि हो गया ।
4. अच्छी कविताएं नहीं आ रही हैं ।
5. किसी भी बात पर किसी भी विषय पर कविता लिख दी जाती है । यह ठीक है कि कविता का विषय कुछ भी हो सकता है पर उसकी उपस्थिति तो कविता के फार्म में ही होना चाहिए ।
6. केवल फार्मूला के आधार पर कब तक कविता लिखी जायेगी । या फार्मूले से जो कविता रची जायेगी वह कहां तक मनुष्य के संकट को दूर करेगी । क्या यहां भी करुणा उसी तरह दौड़ाएंगी जैसे कि क्रौंच पक्षी के बध के समय कवि वाल्मीकि को दौड़ा दिया था ।
7. कविता संवेदना की भूमि जन्मने के बावजूद आश्चर्य का लोक रचती है । वह आज भी रच रही है। इसे कवि और उसके पाठक को साथ साथ देखने की जरूरत है ।
8. कवि और कविता को तभी सामने आना चाहिए जब लिखे बिना रहा न जा सकें ।
9. कवि की बात सूत्र , संकेत , प्रमाण, और मानव मन से सीधे साक्षात्कार के परिणाम होते हैं और इसी रूप में कवि और कविता को सामने आना चाहिए । इससे इतर जो संरचना आती है उसका पाठक और कवि व आलोचक को मुखर होकर प्रत्याख्यान करना चाहिए । जिससे अच्छी और बड़ी रचना सहज ही अपनी पहचान और दुनिया रचेगी ।
यहां यह भी एक सच है जो अच्छा है वह अलक्षित भी रह जाता और चर्चाएं भीड़ पर होती रहती हैं ऐसे में बतौर पाठक बराबर अच्छी रचनात्मकता पर विचार और चर्चा करते रहने से रचनाओं की भीड़ की कुछ न कुछ छंटनी करने में आपका भी योगदान हो सकता है। शर्त बस ये है कि ईमानदारी से रचना का पाठ करने के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचे न की जल्दबाजी में कोई निर्णय लें।
कवि के यहां जो विचार है वह एक संवेदनात्मक धरातल को लेने के बाद ही संसार का लेखा जोखा होता है । कविता की छोटी – छोटी पंक्तियों के बीच भी समाज और सभ्यताएं अपने को ऐसे व्यक्त करती हैं कि आप इसे बस चमत्कृत होकर देख सकते हैं । आपको कहने के लिए अतिरिक्त रूप से कुछ नहीं होता । यह आप पर है कि आप क्या चयन करें या क्या न चयन करें पर जब कविता के समाज में आते हैं और जो कुछ कवि और उसकी कविता कहती है उसे सुनने और मानने के अलावा आपके पास कोई चारा नहीं है । कविता एक तरह से सामाजिक इकाई का संवेदन सूत्र और सामाजिक सूत्र दोनों होती है जिसे पूरा समाज स्वीकार करता है । कविताओं की इसी स्वीकृति के कारण हर कालखंड की ध्वनियां और मनुष्य की सामाजिक संरचना में जो सुनने की दृष्टियां और आदतें हैं वो अलग अलग होती हैं । यह अचानक नहीं है कि पेड़ , वनस्पतियों और प्रकृति के उपादानों के साथ हमारे जीवन गत संसार में परिवार और रिश्ते की कविताएं बहुत तेजी से आ रही हैं । यदि ऐसा है तो यह एक संकेत की तरह भी है कि इन दिनों में इनका ग्राफ बहुत तेजी से नीचे गिरा है और कविताएं इस दुनिया को संभालने के लिए आ रही हैं ।
कविताओं की दुनिया हमारी दुनिया में विश्वास जताने का काम करती है। एक कवि कविता लिखता है। किन उपकरणों से कविता लिखता है और किन हालातों में कविता लिखता है। इसे बिना देखे जाने समझे लोग बाग एक आसान सी टिप्पणी कर देते हैं कि कविताओं की बाढ़ आ गई है। जिसे देखो वही कवि बन जाता है। कुछ भी लिखो और घोषित कर दो कि कविता है। इस तरह की टिप्पणी कविता पर न होकर व्यक्तियों पर की गई टिप्पणी ही होती हैं। जरूरी नहीं कि जो कविता पर टिप्पणी कर रहा है वह कविता का गंभीर पाठक हो या कविता का अध्येता हो। यह भी हो सकता है कि उसे कविताओं से कोई लेना-देना न हो वह बस यूं ही टिप्पणी कर रहा है। इस बात को जानना जरूरी होता है। यह भी जानना जरूरी है कि इन टिप्पणियों के पीछे उद्देश्य क्या है। क्या कविता लिखे जाने का कोई चार्ट है जिसे देखकर कवि कविता लिखे या ऐसी कोई मनसां है टिप्पणीकार की यदि ऐसा नहीं है तो टिप्पणी को इतनी गंभीरता से लेने की जरूरत भी नहीं होती। बहुत सारी टिप्पणियां इस संसार के बारे में बस होती हैं एक कथन की तरह आ जाती हैं और चल जाती हैं कुछ ऐसा ही कवि और कविता के साथ भी होता है। कविता को न समझ पाने के कारण ऐसी टिप्पणियां आती है। स्वाभाविक सी बात है कि इन टिप्पणियों को देने वाले भी वही लोग होते हैं जिन्हें साहित्य का मैनेजमेंट और साहित्य का बाजार संभालना होता है। पर यह भी साफ है कि किसी भी विधान की तरह संसार की तरह कविता का विधान और कविता कर्म आसान नहीं है। कविताओं को परिभाषित किया जाना भी आसान नहीं होता । कोई एक रंग या कोई एक तर्क नहीं होता जिसमें कविता को बांधा जा सकें । कविताएं मनुष्य के भीतर उपस्थित मनुष्यता की रेखांकन होती हैं। कविता के भीतर जो ध्वनि या संकेत आते हैं उसे पढ़ने की समझ हमें होनी चाहिए। यदि हम कविताओं को पढ़ना नहीं जानते तो तय है कि हम सभ्यता संस्कृति और इतिहास को भी ठीक से समझ नहीं पाते । किसी भी समय समाज की समझ तभी बन पाती है जब हममें से अधिकांश उस कालखंड की संरचना और कविता को ठीक – ठीक समझ पाने में समर्थ होते हैं। इन आवाजों को समझना आना चाहिए । यदि आप कविताएं समझ लेते हैं तो संसार को भी समझ लेते हैं । अब आप यह बताएं कि संसार समझना कहां आसान है ? फिर कविता के विस्तार और कविता के संसार को कोई भी इतनी आसानी से कैसे समझ लेगा? जो टिप्पणी करने लगता है। कविता पर जो भी टिप्पणियां आती हैं वे रटी रटाई एक मृत भाषा से उच्चरित होती रहती हैं। यह कविता के ढेर के बीच स्वाभाविक उदासीनता की बातें हैं। इसके लिए कवि भी बहुत दूर तक जिम्मेदार हैं। यहीं नहीं कवि से कहीं ज्यादा जिम्मेदार कविता के गंभीर पाठक और कविताओं पर बात करने वाली वालों की कमी का ही परिणाम है कि हर कोई कविता पर टिप्पणी करना अपना अधिकार समझ लेता है । यह जाने बिना की कविता क्या है ? कविता की उपस्थिति कहां है ? किस कारण से किस तरह की कविताएं आ रही हैं ? क्या कविताएं भी मानवीय वातावरण सामाजिक परिस्थितियों और संवेदन के बीच एक दवा की तरह काम करती हैं । या यूं ही कविताओं के संसार में एक कविता को आपने भी उतार दिया। अपनी परीक्षा कराने के लिए या कविताओं की दुनिया को जाने बिना ही आप भी बस कविताओं पर बात करते रहते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि कविताएं भी भीड़ तंत्र और अराजकता का शिकार हो गई है या अन्य कलाओं की तरह कविता के संकट पर बातें नहीं होनी चाहिए।

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments