किताबें

– विवेक कुमार मिश्र

vivek kumar mishra
विवेक कुमार मिश्र

किताबें हमें भर देती हैं
ज्ञान से, संवेदना से और मानवीय सफलता से
विचार सरणि की बहुलता से
इतिहास, संस्कृति और सभ्यता के
अनगिनत प्रसार का संरक्षण
किताबें ही करती हैं
यह सच है कि समय की धूल भी
किताबों पर जमती हैं
तो एक न एक दिन
किताबों से धूल झारने वाले
पाठक भी मिल जाते हैं
एक न एक दिन खुल जाता है
किताबों का रहस्य
किताबों की जादुई दुनिया में
बच्चे बड़े बुजुर्ग स्त्रियां सभी होते हैं
यों कहें कि पूरा संसार ही
किताबों के साथ साथ
पर्त दर पर्त खुलता जाता है
किताबें संभाल कर रखती हैं
जादुई कहानियां,
टूटी बिखरी जिंदगी की बातें
कुछ भी न हो तो भी संसार
यदि कहीं सबसे ज्यादा
सुरक्षित होता है
तो वह किताबें ही हैं
किताबें मानव सभ्यता के बीच
मनुष्य की सबसे मूल्यवान धरोहर हैं
किताबें बिना कहे
इतना कुछ कह देती हैं कि
इनसे आगे कोई जा ही न सके
बंद घरों की खिड़कियां
किताबें ही खोलती हैं
और रुके हुए कदमों को
आगे ले जाने के लिए
कोई आता हो या न आता हो
पर किताबें सभ्यता के दरवाजे पर
बराबर से दस्तक देती रहती हैं
किताबें समय को
अपने साथ बांध कर रखती हैं
समाज को आगे ले जाने का
रास्ता भी किताबें ही दिखाती हैं
किसी के पास कुछ हों या न हों
यदि उसके पास किताबें हैं
फिर तो तय है कि
उसे प्रकाश पथ मिल जायेगा
और एक दिन किताबों के
रास्ते पर चलते चलते
मनुष्य मुक्ति के द्वार पर
नृत्य करते जरूर मिलेगा…!!!
– विवेक कुमार मिश्र

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments