किसी के लिए ऑंख नम क्या करेंगे। ये पत्थर हैं पत्थर सनम क्या करेंगे।।

shakoor anwar
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

किसी के लिए ऑंख नम क्या करेंगे।
ये पत्थर हैं पत्थर सनम क्या करेंगे।।
*
मुहब्बत का ख़ुद एक मज़हब अलग है।
मुहब्बत में देरो-हरम क्या करेंगे।।
*
जहाॅं बुग़्ज़ो नफ़रत*की महफ़िल सजी हो।
वहाॅं जाके बतलाओ हम क्या करेंगे।।
*
क़लम तक भी जिनको पकड़ना न आया।
वो ग़म का फ़साना रक़म* क्या करेंगे।।
*
जो तूफ़ान उठते हैं उठने दो “अनवर”।
मेरे हौसले को ये कम क्या करेंगे।।

बुग़्ज़ो नफ़रत*द्वेष और घृणा
रक़म करना* लिखना

शकूर अनवर

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