
ग़ज़ल

शकूर अनवर
किसे आवाज़ दूॅं मैं दुनिया वालो।
भॅंवर में है मेरी कश्ती निकालो।।
*
ये बिजली देखना गिर कर रहेगी।
तुम अपने आशियाने को बचालो।।
*
अब आगे ऑंसुओं का मरहला* है।
अभी कुछ देर है हॅंसलो हॅंसालो।।
”
अरे ऐ ज़ालिमो, रोको तबाही।
अरे ऐ क़ातिलो, हथियार डालो।।
*
मेरी तन्हाई देगी बददुआऍं।
मेरी महफ़िल से उठकर जाने वालो।।
*
यहाॅं इफ़रात होगी मछलियों की।
यहाॅं ठहरो यहीं पर जाल डालो।।
”
लहू इंसान का सस्ता है “अनवर”।
इसे जब जी में आये तुम बहालो।।
*
शकूर अनवर
मरहला* पड़ाव
इफ़रात*अधिकता
Advertisement