
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
आपस की बुराई नहीं फ़नकार* की बातें।
शायर हो करो मीर के अशआर की बातें।।
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क्या समझें वो तूफ़ान की मॅंझधार की बातें।
इस पार से करते हैं जो उस पार की बातें।।
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मक़तल* में मेरे ख़ूॅं का कहीं ज़िक्र न आया।
लोगों की जुबाॅं पर रहीं तलवार की बातें।।
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जब जब भी मिली तल्ख़ी ए हालात* से फ़ुर्सत।
याद आईं उसी शोख़* सितमगार की बातें।।
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फ़रसूदा* रिवायात* की तक़लीद को छोड़ो।
बेसूद* हैं गिरती हुई दीवार की बातें।।
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फिर आज मुख़ातिब* सरे-महफ़िल* वही “अनवर”।
फिर आज सुनो शायरे- ख़ुद्दार की बातें।।
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फ़नकार*कलाकार शायर
मक़तल*वधस्थल
तल्ख़ी ए हालात*हालात की कड़वाहट
शोख़*चंचल
सितम गार यानी जुल्म करने वाला प्रेमिका
फ़रसूदा*पुरानी
रिवायात*परंपराएं
तक़लीद*अनु पालना
बेसूद*बे फ़ायदा, बेकार
मुख़ितिब*संबोधित
सरे-महफ़िल* महफ़िल के सामने, सब के समक्ष
शकूर अनवर
9460851271