
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
कुछ न होगा तेरी सदाओं* से।
कोई लौटा नहीं ख़लाओं* से।।
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और गुज़रोगे तुम ख़ताओं से।
कुछ न पाओगे पेशवाओं* से।।
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जब भी नफ़रत का बीज बोया है।
ख़ून बरसा है इन फ़ज़ाओं से।।
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हाय इस दौर की मसीहाई*।
लोग मरने लगे दवाओं से।।
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मिन्नते नाख़ुदा* न कर “अनवर”।
ख़ुद को महफ़ूज़ रख हवाओं से।।
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सदाओं*आवाज़ देना
ख़लाओं* शून्य
पेशवाओं*मार्ग दर्शक
मसीहाई*चिकित्सा इलाज
मिन्नते ना ख़ुदा*मल्लाह से प्रार्थना करना
शकूर अनवर
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