जहाँ करते हैं साज़िश* ये ॲंधेरे।। वहीं पर इक दीया जलता रखूॅंगा।

shakoor anwar
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

सफ़र* इस बार कुछ ऐसा रखूॅंगा।
अलग मंज़िल* अलग रस्ता रखूॅंगा।।
*
जहाँ करते हैं साज़िश* ये ॲंधेरे।।
वहीं पर इक दीया जलता रखूॅंगा।
*
तुम अपने वास्ते ढूॅंढो किनारा।
मैं अपनी राह में दरिया रखूॅंगा।।
*
चलो ऐ ऑंसुओं अब घर बदल लो।
मैं ऑंखों में कोई सपना रखूॅंगा।।
*
सॅंभालो अपने हाथी ऊॅंट घोड़े।
मैं अगली चाल में प्यादा* रखूॅंगा।।
*
किसी की याद ही रहती है “अनवर”।
सिवा इसके मैं दिल में क्या रखूॅंगा।।
*

सफ़र*यात्रा
मंज़िल*लक्ष्य
साज़िश*षडयंत्र
प्यादा*शतरंज का सब से छोटा मोहरा

शकूर अनवर
9460851271

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments