
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
सफ़र* इस बार कुछ ऐसा रखूॅंगा।
अलग मंज़िल* अलग रस्ता रखूॅंगा।।
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जहाँ करते हैं साज़िश* ये ॲंधेरे।।
वहीं पर इक दीया जलता रखूॅंगा।
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तुम अपने वास्ते ढूॅंढो किनारा।
मैं अपनी राह में दरिया रखूॅंगा।।
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चलो ऐ ऑंसुओं अब घर बदल लो।
मैं ऑंखों में कोई सपना रखूॅंगा।।
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सॅंभालो अपने हाथी ऊॅंट घोड़े।
मैं अगली चाल में प्यादा* रखूॅंगा।।
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किसी की याद ही रहती है “अनवर”।
सिवा इसके मैं दिल में क्या रखूॅंगा।।
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सफ़र*यात्रा
मंज़िल*लक्ष्य
साज़िश*षडयंत्र
प्यादा*शतरंज का सब से छोटा मोहरा
शकूर अनवर
9460851271
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