जहाॅं जहाॅं से भी गुज़रा सुकून की ख़ातिर। वहीं वहीं पे मिला इज़तराब* का दरिया।।

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ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

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शकूर अनवर

है किसके वास्ते हुस्नो- शबाब* का दरिया।
जो तुमने मुझको दिया है इताब* का दरिया।।
*
निकल गया मेरी ऑंखों से ख़्वाब का दरिया।
बचा हुआ है नज़र में सराब* का दरिया।।
*
गुज़र गया है तेरी खु़दनुमाई* का मौसम।
उतर गया है तेरे पेचो ताब* का दरिया।।
*
जहाॅं जहाॅं से भी गुज़रा सुकून की ख़ातिर।
वहीं वहीं पे मिला इज़तराब* का दरिया।।
*
अगरचे* लोग बचाने भी आए थे लेकिन।
बहा के ले गया मुझको शबाब* का दरिया।।
*
ये शहर इसलिए इतना हसीन है “अनवर”।
यहाॅं से हो के निकलता है ख़्वाब का दरिया।।
*
हुस्नो-शबाब* सुन्दरता,
इताब*कोप, रोष, ग़ुस्सा,
सराब* मृगतृष्णा,धोखेबाज़ी, मरीचिका,

खु़दनुमाई*आत्मप्रशंसा, ख़ुद की नुमाइश करना, शेखी,
पेचो ताब* चिंता, फ़िक्र, बल ग़ुस्सा,
इज़तराब* बेचैनी, व्याकुलता,
अगरचे* यद्यपि,
शबाब* यौवन,

शकूर अनवर

9460851271

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