
ग़ज़ल
शकूर अनवर
दिल में अब भी गुमान बाक़ी है।
कोई तो मेहरबान बाक़ी है।।
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तीर बाक़ी कमान बाक़ी है।
फिर निशाने पे जान बाक़ी है।।
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रसनो दार* की तमन्ना क्यूॅं।
क्या कोई इम्तेहान बाक़ी है।।
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ज़ख़्म ऐसा दिया मुहब्बत ने।
दिल पे उसका निशान बाक़ी है।।
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तुम जिसे सायबान* कहते हो।
बस यही आसमान बाक़ी है।।
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बस उसी की तरफ़ चले चलिए।
शहर ए दिल* में अमान बाक़ी है।।
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कौन फ़रहाद नहर खोदेगा।
अब तो बस दास्तान बाक़ी है।।
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नाम ओ नामूस* हम बचा न सके।
टूटी फूटी ज़ुबान बाक़ी है।।
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फ़ासला ख़त्म क्यूँ नहीं होता।
जो अभी दरमियान बाक़ी है।।
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हम सफ़र कोई भी नहीं “अनवर”।
दूर तक आसमान बाक़ी है।।
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रसनो दार* फाॅंसी का फंदा और सूली
सायबान* छप्पर
शहर ए दिल* प्रेम नगर
नामो नामूस*नाम और इज़्ज़त
ज़ुबान* भाषा
शकूर अनवर
9460851271