ज़माना हो गया उनका ज़माना ख़त्म हुए। मगर वो ख़ुद को अभी तक सॅंवर के देखते हैं।।

shakoor anwar
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

मुहब्बतों की डगर से गुज़र के देखते हैं।
लो हम भी दिल का समन्दर उतर के देखते हैं।।
*
सुना है अपना ख़ुदा नेकियों* से ख़ुश होगा।
सो अपना नामा ए ऐमाल* भर के देखते हैं।।
*
ज़मीन वालों के सुख-दुख की क्या ख़बर उनको।
हमेशा ख़्वाब जो शम्सो-क़मर* के देखते हैं।।
*
ज़माना हो गया उनका ज़माना ख़त्म हुए।
मगर वो ख़ुद को अभी तक सॅंवर के देखते हैं।।
*
यहाॅं तो टूटे हुए दिल की क़द्र है “अनवर”।
हम अपने जिस्म* के अंदर बिखर के देखते हैं।।
*

नेकियों*नेक काम अच्छे काम
नामा ए ऐमाल*कर्मों का लेखा जोखा
शम्सो-क़मर*सूरज और चाॅंद
जिस्म*शरीर

शकूर अनवर
9460851271

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