ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
हम तने तन्हा* चले थे क़ाफ़िला कोई न था।
मंज़िलें दुशवार थीं और रास्ता कोई न था।।
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ज़िंदगी की राह में दोनों बहुत मजबूर थे।
दोनों इतना जानते थे बेवफ़ा कोई न था।।
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उस गली की आरज़ू दिल से निकलती ही नहीं।
जिस गली की सम्त* मेरा रास्ता कोई न था।।
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एक उसका साथ था और रास्ते की मुश्किलें।
हादसे ही हादसे थे दूसरा कोई न था।।
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तुझसे थी तनक़ीद* मेरी तुझसे ही था तब्सिरा*।
कहने वाला मुझको अच्छा या बुरा कोई न था।।
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हम जिए “अनवर” कुछ ऐसे दूरियाँ बढ़ती गईं।
वर्ना अपने दर्मियाॅं भी फ़ासला कोई न था।।
तने तन्हा*अकेला
सम्त*तरफ
तनक़ीद*आलोचना
तब्सिरा*विवेचना
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शकूर अनवर
9460851271