दुश्मन हो कोई दोस्त हो या वो रक़ीब* हो। मेरे लिए तो आपका काॅंटा भी फूल है।।

shakoor anwar books

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

shakooranwar
हरचंद* इसमें ख़ार* हैं डर है, बबूल है।
लेकिन ये रास्ता मुझे फिर भी क़ुबूल है।।

दुश्मन हो कोई दोस्त हो या वो रक़ीब* हो।
मेरे लिए तो आपका काॅंटा भी फूल है।।
*
फिर उनकी याद आने के आसार* बन गये।
चेहरे पे आज फिर वही रंगे मलूल* है।।
*
तर्क़े तअल्लुक़ात तो होते ही हैं जनाब।
जो भी मुआमला है जवानी की भूल है।।
*
ये दौर है वबा* का मियाँ घर में बैठिए।
अब ज़िक्रे ज़ुल्फ़े यार भी मुतलक़* फ़िज़ूल है।।
*
अब तो हर एक दिल में कुदूरत* ने घर किया।
अब तो हर एक हाथ में नफ़रत का शूल है।।
*
मज़लूम* कर दिया गया उर्दू ज़ुबान को।
“अनवर” ये क्या निज़ाम* है कैसा उसूल है।।
*

हरचंद*हर तरह,
ख़ार*काॅंटे,
रक़ीब*दुश्मन प्रेमिका का दूसरा प्रेमी,
आसार*लक्षण,
रंगे मलूल*उदासी का भाव,
तर्क़े तअल्लुक़ात*संबंध विच्छेद,
वबा*महामारी,
मुतलक़*बिलकुल, कतई,
कुदूरत* बुराई घृणा
मज़लूम*पीड़ित
निज़ाम* यानी व्यवस्था

शकूर अनवर
9460851271

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments