दूर ही का सलाम था उससे। फिर भी अपना बना लिया उसने।।

ग़ज़ल
शकूर अनवर
ऐसा कितना कमा लिया उसने।
ख़ुद को मिट्टी बना लिया उसने।।
*
वो उजाले फ़रेब* ही देंगे।
जिन उजालों को पा लिया उसने।।
*
हम तो सब कुछ लुटा के बैठ गये।
अपना सब कुछ बचा लिया उसने।।
*
ज़ुल्म की भूख क्यूॅं नहीं मिटती।
सारी दुनिया को खा लिया उसने।।
*
दूर ही का सलाम था उससे।
फिर भी अपना बना लिया उसने।।
*
ये चिराग़ों की बददुआऍं* थीं।
अपने घर को जला लिया उसने।।
*
उसने ऐसा भी क्या किया “अनवर”।
फिर भी सिक्का जमा लिया उसने।।
*
फ़रेब* धोका,
बददुआऍं* शराप

शकूर अनवर
9460851271

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