धार्मिक और नैतिक शिक्षा प्रदान करता है तुलसीदास का साहित्य

40

-महाकवि तुलसी जयंती समारोह 2024

कोटा। राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय, कोटा में गुरूवार आठ अगस्त को तुलसी साहित्य में लोकमंगल दृष्टि पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। आयोजन की शुरुआत माँ शारदे की प्रतिमा एवं गोस्वामी तुलसीदास के छाया चित्र पर माल्यार्पण से की गई।

डॉ. शशि जैन ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। मंच संचालन के.बी. दीक्षितने निभाई। स्वागत उदबोधन डॉ. दीपक कुमार श्रीवास्तव, संभागीय पुस्तकालय अध्यक्ष ने दिया। डॉ श्रीवास्तव ने कहा कि-“ तुलसीदास जी की रचनाएँ न केवल धार्मिक प्रवृत्तियों को स्पष्ट करती हैं बल्कि समाज के उत्थान और लोकमंगल के लिए भी प्रेरित करती हैं। उनकी काव्य-रचनाएँ विभिन्न जातियों और वर्गों के बीच धार्मिक एकता और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देती हैं।
सत्येन्द्र वर्मा (उप प्राचार्य) ने बीज भाषण में उन्होंने तुलसीदास के साहित्य में लोकमंगल की दृष्टि पर प्रकाश डाला। उन्होने कहा कि – दोहावली और श्रीराम सौरभ तुलसीदास के संक्षिप्त लेकिन प्रभावशाली काव्य हैं, जो धार्मिक और नैतिक शिक्षा प्रदान करते हैं। इन रचनाओं में भक्ति की गहराई और जीवन के विविध पहलुओं पर उपदेश प्रस्तुत किए गए हैं।
मुख्य वक्ता खुशवंत मेहरा (प्राध्यापक, हिंदी) ने तुलसी साहित्य की गहराइयों पर प्रकाश डाला और उसकी लोकमंगल दृष्टि को समझाया। उन्होने इस अवसर पर कहा कि – तुलसी साहित्य, विशेष रूप से गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित काव्य और ग्रंथ, भारतीय साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। तुलसीदास ने अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से भक्ति और धर्म की गहरी समझ प्रस्तुत की, विशेष रूप से रामचरितमानस के माध्यम से।
आचार्य बद्रीलाल गुप्ता (महाकवि) ने अध्यक्षता की और अपने विचार साझा किए। उन्होने इस अवसर पर कहा कि – तुलसी साहित्य भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। गोस्वामी तुलसीदास की रचनाएँ भक्ति, धर्म, और नैतिकता के संदेश को जनसाधारण तक पहुँचाने का माध्यम बनी हैं। उनकी काव्य-रचनाओं में निहित लोकमंगल दृष्टि और सामाजिक सन्देश आज भी प्रासंगिक और प्रेरणादायक हैं।

मुख्य अतिथि रघुवर दयाल विजय (सेवानिवृत्त उप प्राचार्य) और विशिष्ट अतिथि राधेश्याम शर्मा (सेवानिवृत्त प्राचार्य) ने भी अपने विचार रखे। रघुवर दयाल ने कहा कि – तुलसीदास ने अपनी रचनाओं में आसान हिंदी भाषा का प्रयोग किया, जिससे यह आम जनता के लिए सुलभ हो गई। उनकी काव्य शैली और भावनात्मकता ने उनकी रचनाओं को व्यापक लोकप्रियता दिलाई।

10

कार्यक्रम के समापन पर डॉ. शशि जैन ने आभार प्रदर्शन किया, जिसमें उन्होंने सभी उपस्थित अतिथियों और सहभागियों का धन्यवाद अदा किया। राधेश्याम शर्मा ने कहा कि – काव्य और पद्य में धार्मिक और नैतिक शिक्षा देने वाली यह रचना तुलसीदास के काव्य कौशल का प्रमाण है। इसमें भक्ति, साधना, और भगवान के प्रति प्रेम को प्रकट करने वाली कविताएँ हैं।

 

 

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments