मिलन की थी बारिश लगातार भीगे। जुदा जब हुए तो लगातार रोये।।

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ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

शकूर अनवर

हुए जब तअल्लुक़* से बेज़ार* रोये।
बने जब मुहब्बत में हुशियार रोये।।
*
वो अपनी जफ़ाओं पे नादिम* नहीं हैं।
हम अपनी वफ़ाओं पे बेकार रोये।।
*
मिलन की थी बारिश लगातार भीगे।
जुदा जब हुए तो लगातार रोये।।
*
ये कैसी मुहब्बत ये क्या दोस्ती है।
मुझे काटकर अहले-तलवार* रोये।।
*
मेरा ख़ून जब भी बहाया ज़मीं पर।
न सरकार रोई न अख़बार रोये।।
*
उन्हीं रहज़नों* ने मेरे घर को लूटा।
जो करके मेरे घर को मिस्मार* रोये।।
*
लहू दे के गुलशन सॅंवारा है फिर भी।
बहार आई “अनवर” तो हर बार रोये।।
*

तअल्लुक़*संबंध
बेज़ार*परेशान
नादिम*शर्मिंदा
अहले तलवार*तलवार वाले
रहज़नों*लुटेरों
मिस्मार*ध्वस्त

शकूर अनवर
9460851271

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